कुछ पहले से सुधर गया है,वक्त सुधरता जाय,
अडिग न हो विश्वास ध्यान रख,मत इतना घबराय।
धीरज धर हिम्मत रख ज्यादा,मत कर हाहाकार,
पतझड़ सहकर ही पाते वन,मधुमासी उपचार।
काल-चक्र चलता रहता है,नित आती नव भोर,
अँधियारे को जाना पड़ता,हों चाहे घनघोर।
हमें जीतना ही अब होगा,मत समझो असहाय,
अडिग न हो विश्वास ध्यान रख,मत इतना घबराय।
फिर विकास की होंगी बातें,गायेंगे नवगीत,
हाथ मिलाकर गले लगेंगे,सारे ही मनमीत।
महामारी की उम्र क्षणिक है,जीवन यह अनमोल,
रखो हौंसलों के दरवाजे,प्रतिपल प्यारे खोल।
जंग जीत यह हम जायेंगे, मंगल थाल सजाय,
अडिग न हो विश्वास ध्यान रख,मत इतना घबराय।
डॉ.शुचिता अग्रवाल "शुचिसंदीप"
तिनसुकिया, असम
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