आप यूँ गुमसुम न बैठा करो,
घर पर उदासी छा जाती है।
चिंताओं को साथ न लाया करो,
वो क्या है न कि-
अपने घर की रौनक चली जाती है।
इस गमगीन से माहौल में,
अपनी बिटिया भी सहम सी जाती है।
खुशियों का पिटारा दिन भर जो भरा उसने,
वो क्या है न कि-
डरकर आपको दिखाना ही भूल जाती है।
आपके घर आने से पहले,
माँ-पिताजी भी अपना काम निपटा लेते हैं।
दिनचर्या आपको सुनाने को व्याकुल थे,
लेकिन वो क्या है न कि-
आपको उदास देख चुपचाप सो जाते है़ं।
आपके हँसते चेहरे को देख,
पूरे परिवार को खुशी मिल जाती है।
माना आपने हमारी सब जरूरतें पूरी की,
लेकिन वो क्या है न कि-
आपकी उदासी हमारी खुशियाँ छीन लेती है।
एक अज्ञानी, नासमझ गृहणी ही हूँ मैं,
माना आपके क्षेत्र का ज्ञान नहीं है मुझे।
यूँ तो जिंदगी कट ही रही है हरपल,
लेकिन वो क्या है न कि-
खुश होके जीओ तो बेहतर बन जाती है।
शुचिता अग्रवाल,'शुचिसंदीप'
तिनसुकिया(असम)
No comments:
Post a Comment