क्या कहूँ मेरे हमसफ़र मोबाइल,
तुझमें हर रिश्ते सिमटने लगे।
बच्चे और पति भी अब तो,
तुझमें ही नजर आने लगे।
उठते ही सुबह सबसे पहले,
अपने हाथों में तुम्हें उठाती हूँ।
चार्जर रूपी कप से तुमको,
पहले चाय पिलाती हूँ।
बिगड़ जाये कभी सेहत तुम्हारी,
तो पागल मैं हो जाती हूँ।
सर्विस सेंटर नामक हॉस्पिटल में,
बड़े डॉक्टर को दिखलाती हूँ।
व्हाट्सऐप रूपी दिल की धड़कन,
कैमरा रूपी कोर्निया दिखाती हूँ।
अंग- अंग तेरा सहला -सहला कर,
डॉक्टर से पूरा चेकअप करवाती हूँ।
सोचो तुम्ही न होते तो क्या,
सबसे मैं यूँ जुड़ पाती?
चार दिवारी में रहकर भी क्या,
विश्व भ्रमण मैं कर पाती?
शुचिता अग्रवाल "शुचिसंदीप"
तिनसुकिया, असम
No comments:
Post a Comment