Wednesday, May 12, 2021

हास्य,दामादजी

दामादजी तोरण का प्रतिरूप,

कभी हैं छाँव कभी हैं धूप।।


मेरी लाडो के वो सरताज,

करे उसके मन पर वो राज,

उठाये बिटिया के सब नाज,

दबाये पाँव करे सब काज,

दामादजी सपनों का स्वरूप,

कभी हैं छाँव कभी हैं धूप।


सासु माँ देख देख हर्षाये,

पुत्र रूप दामाद में पाये,

न्यौछावर दौलत सारी कर जाये,

निवाला उस घर कभी न खाये,

दामादजी खुशियों का प्रारूप,

कभी हैं छाँव कभी हैं धूप।


पहन के सूट- बूट ये आते,

खुशियाँ लाख साथ में लाते,

छोटी साली को पास बैठाते,

नाच नाच सब इन्हें रिझाते,

दामादजी राजा का है रूप,

कभी हैं छाँव कभी हैं धूप।


अतिथि ये मन को अति भाये,

ब्राह्मण देव भी इनमें समाये,

अकड़ कर पूजा ये करवाये,

टीका, गट, दक्षिणा पाये,

दामादजी न्यौच्छावर कभी कूप,

कभी हैं छाँव कभी हैं धूप।


थोड़ी देर ही बस ये सुहाये,

कहीं नाराज न ये हो जाये,

यही सोच के मन घबराये,

बिदा करके ही चैन सा आये,

दामादजी ठंडाई कभी सूप,

कभी हैं छाँव कभी हैं धूप।


दामादजी तोरण का प्रतिरूप

कभी हैं छाँव कभी हैं धूप।।


डॉ.शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप'

तिनसुकिया,असम


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