Wednesday, May 5, 2021

#गीतिका,सुहानी भोर

बह्र-122,21


सुहानी भोर,

छटा चितचोर।


खुला आकाश,

हवा पुरजोर।


विहग मदमस्त,

मचाये शोर।


बुझे पशु प्यास,

नदी का छोर।


कुहक कर दूर,

थिरकता मोर।


चले मनमीत,

भ्रमण की ओर।


प्रभो के हाथ,

जगत की डोर।


#शुचिताअग्रवाल #शुचिसंदीप

#तिनसुकिया

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