कामरूप/वैताल छन्द
माँ की रसोई,श्रेष्ठ होई,है न इसका तोड़,
जो भी पकाया,खूब खाया,रोज लगती होड़।
हँसकर बनाती,वो खिलाती,प्रेम से खुश होय,
था स्वाद मीठा,जो पराँठा, माँ खिलाती पोय।
खुशबू निराली,साग वाली,फैलती चहुँ ओर,
मैं पास आती,बैठ जाती,भूख लगती जोर।
छोंकन चिरौंजी,आम लौंजी,माँ बनाती स्वाद,
चाहे दही हो,छाछ ही हो,कुछ न था बेस्वाद।
मैं रूठ जाती,वो मनाती,भोग छप्पन्न लाय,
सीरा कचौरी या पकौड़ी, सोंठ वाली चाय।
चावल पकाई,खीर लाई,तृप्त मन हो जाय,
मुझको खिलाकर,बाँह भरकर,माँ रहे मुस्काय।
चुल्हा जलाती,फूँक छाती,नीर झरते नैन,
लेकिन न थकती,काम करती,और पाती चैन।
स्वादिष्ट खाना,वो जमाना,याद आता आज,
उस सी रसोई,है न कोई,माँ तुम्ही सरताज।
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कामरूप/वैताल छन्द विधान-
यह 26 मात्राओं के चार पदों का सम पद मात्रिक छंद है, दो-दो या चारों पदों पर तुकान्तता रहती है।पदों की यति 9-7-10 पर होती है,यानि प्रत्येक पद में तीन चरण होंगे,पहला चरण 9 मात्राओं का, दूसरा चरण 7 मात्राओं का तथा तीसरा चरण 10 मात्राओं का होगा।
पदांत या तीसरे या आखिरी चरण का अंत गुरु-लघु (2 1) से होता है।
पदों की मात्राओं के आंतरिक विन्यास के अनुसार
पहले चरण का प्रारम्भ गुरु या लघु-लघु से होना चाहिए।
दूसरे चरण का प्रारम्भ गुरु-लघु से हो यानि, दूसरे चरण का पहला शब्द या शब्दांश ऐसा त्रिकल बनावे जिसका पहला अक्षर दो मात्राओं का हो।
तीसरे चरण का प्रारम्भिक शब्द भी त्रिकल ही बनाना चाहिए लेकिन इस त्रिकल को लेकर कोई मात्रिक विधान नहीं है. अर्थात, प्रारम्भिक शब्द 21 या 12 हो सकते हैं।
22122,2122,2122 21 (अतिउत्तम)
आंतरिक यति भी समतुकांत हो तो छन्द अधिक मनोहारी बन सकता है लेकिन यह आवश्यक नहीं है।
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शुचिता अग्रवाल,शुचिसंदीप'
तिनसुकिया, असम
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