Thursday, May 27, 2021

लावणी छन्द,माता कौशल्या के उद्गार

राम लला बिन तेरे माँ को, लगता जग ये सूना है।

टीस हृदय में रह-रह उठती, तुम बिन स्वाद अनूना है।

सूख गया अँखियों का पानी,भूल गयी सुध ही अपनी।

एक काम अब राम नाम की, आठ पहर माला जपनी।।


कैसी होगी मेरी सीता, क्या उसने खाया होगा।राजकुमारी ने जंगल में, कितना ही दुख है भोगा।

लखन सलोना निर्मल मन का, याद बहुत ही आता है।

यादों का झोंका आ-आ कर, मुझे चिढ़ा कर जाता है।


मन्दिर की घण्टी भी धीमी, दीपक निर्बुझ लगता है।

आहट तेरी ही सुनने को, सारा आलम जगता है।।

फूल खिले ना बरसा पानी,हँसी ठिठोली चली गयी।

राम अयोध्या बाट जोहती,कब आयेगी भोर नयी।।


डॉ.शुचिता अग्रवाल"शुचिसंदीप"

तिनसुकिया, असम


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