Monday, May 31, 2021

माधव मालती छन्द, 'नारी शौर्य गाथा'

 माधव मालती छन्द,'नारी शौर्य गाथा'


कष्ट सहकर नीर बनकर,आँख से वो बह रही थी।

क्षुब्ध मन से पीर मन की, मूक बन वो सह रही थी।

स्वावलम्बन आत्ममंथन,थे पुरुष कृत बेड़ियों में।

एक युग था नारियों की,बुद्धि समझी ऐड़ियों में।


आज नारी तोड़ सारे बन्धनों की हथकड़ी को,

बढ़ रही है,पढ़ रही है,लक्ष्य साधें हर घड़ी वो।

आज दृढ़ नैपुण्य से यह,कार्यक्षमता बढ़ रही है।

क्षेत्र सारे वो खँगारे, पर्वतों पर चढ़ रही है।


नभ उड़ानें विजय ठाने, देश हित में उड़ रही वो,

पूर्ण करती हर चुनौती हाथ ध्वज ले बढ़ रही वो।

संकटों में कंटकों से है उबरती आत्मबल से,

अब न अबला पूर्ण सबला विजय उसकी शौर्यबल से।


राष्ट्र सेवक मार्गदर्शक हौंसलों के पर लगाय,

अड़चनों से दुश्मनों के होश देती वो उड़ाय।

शान भी अभिमान भी वह देश का सम्मान नारी,

आज कहता विश्व सारा है गुणों की खान नारी।।

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माधव मालती छन्द विधान-

यह मापनी आधारित मात्रिक छन्द है।

इसकी मापनी निम्न है-

2122 2122 2122 2122

चूंकि यह मात्रिक छन्द है अतः गुरु वर्ण (2) को दो लघु (11) में तोड़ा जा सकता है।

इसके चार चरण होते हैं, जिनमें दो-दो या चारों चरण समतुकांत होने चाहिए।

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शुचिता अग्रवाल,'शुचिसंदीप'

तिनसुकिया, असम


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