जनक सुता प्रिय जानकी,रामचन्द्र भरतार।
सब कष्टों से है भरा,इनका जीवनसार।।
कष्टों का पर्याय ही,नारी जीवन मान।
क्या निर्धन क्या धनवती,सब खोती अभिमान।।
दया,धैर्य,संयम,क्षमा,नारी गहने चार।
जो धारण करती वही,भवसागर हो पार।।
दिव्य रूप की थी धनी,पतिव्रत धर्म महान।
मात जानकी का करे,सकल जगत गुणगान।।
मात जानकी ने दिया,सबको यह संदेश।
विचलित होना है नहीं,चाहे जो परिवेश।।
डॉ.शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप'
तिनसुकिया, असम
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