विष्णुपद छंद 'मंजिल पाएंगे'
आगे हरदम बढ़ने का हम, लक्ष्य बनायेंगे।
चाहे रोड़े हों राहों में, मंजिल पायेंगे।।
नवल सपन आँखों में लेकर, हम सोपान चढ़ें।
कायरता की तोड़ हथकड़ी, हम निर्भीक बढ़ें।।
जोश भरे कदमों की आहट, सकल विश्व सुनले।
मानवता की रक्षा के हित, नेक राह चुनले।।
विश्व शांति के लिए साथ हम, दौड़ लगायेंगे।
चाहे रोड़े हों राहों में, मंजिल पायेंगे।।
भारत का इतिहास सुनहरा, वीर सपूतों का।
राष्ट्रप्रेम जिन माताओं में, उनके पूतों का।।
वही रक्त नस-नस में सबके, अब भी भरा हुआ।
ले मशाल उठ बढ़ तू आगे, क्यूँ है डरा हुआ?
सबसे ऊँचा झंडा अपना, हम फहरायेंगे।
चाहे रोड़े हों राहों में,मंजिल पायेंगे।।
आजादी की कीमत हमने, पुरखों से जानी।
होता मेहनत का फल मीठा, बात सत्य मानी।।
कथनी करनी एक बनाकर, अडिग लक्ष्य चुनलें।
हम कर सकते,करना हमको, शुचि मन की सुनलें।।
नहीं किया जो काम किसी ने, हम कर जायेंगे।
चाहे रोड़े हों राहों में, मंजिल पायेंगे।।
शुचिता अग्रवाल,"शुचिसंदीप"
तिनसुकिया, असम
Suchisandeep2010@gmail.com
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विष्णुपद छन्द विधान-
विष्णु पद छन्द सम मात्रिक छन्द है। यह 26 मात्राओं का छन्द है जिसमें 16,10 मात्राओं पर यति आवश्यक है।, अंत में वाचिक भार 2 यानि गुरु का होना अनिवार्य है।कुल चार चरण होते हैं क्रमागत दो-दो या चारों चरण समतुकांत होने चाहिये।
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शुचिता अग्रवाल,'शुचिसंदीप'
तिनसुकिया, असम
स्वदेश-प्रेम जागरण के विशाल और उदात्त उद्देश्य को सामने रख सृजन किए गए इस उद्बोधन गीत में आपने पूरी ईमानदारी से देशभक्ति को जगाने में अद्भुत सफलता प्राप्त की है।
ReplyDeleteआपका गीत सचमुच एक जागरण गीत है, जिसे नि:संदेह वीरोचित भावों को जगाने वाला कहा जा सकता है :
*वही खून फिर से दोड़े, जो भगतसिंह में था*
श्यामसनेहीलाल
उत्साहवर्धन हेतु आपका बहुत बहुत आभार श्याम स्नेही लाल जी।
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