दस्तक हौले से दी तुमने
दिल के दरवाजे खुले तभी
कुछ असमंजस में तुम भी थे
कुछ घबराई मैं भी थी
उस प्रेम की पहली धड़कन का
वो मुस्कुराना याद हैं।
खामोशी में झूमता लम्हा था
सर्द हवाएं , माथे पर पसीना था
कभी झोंकों से बदन में सरसराहट
कभी स्पर्श तुम्हारे हाथों का था
शर्मा कर हमारी नजरों का
वो मुस्कुराना याद है।
खिला उपवन तुमसे था मेरा
बस तुम्ही शाम और तुम्ही सवेरा
जीवन की दौलत तुझमें ही पाई
जब कसम एक होने की खाई
बाहों में खुशी को भरकर के
वो मुस्कुराना याद हैं।
डॉ(मानद)सुचिता अग्रवाल 'सुचिसंदीप'
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