बरखा रौद्र रूप धर आयी।
घोर धरा पर विपदा छाई।।
बिलख बिलख कर रोये माई।
डूब रहा पानी में भाई।।
एक डाल पर छुटकी झूली।
खाना पीना सब वो भूली।।
आँगन डूबा फूटी शाला।
चिरनिद्रा में बालक बाला।।
पड़ा धरा पर बरगद बूढा।
आलय नभचर ने था ढूंढा।।
गाय बैल बकरी सब रोये।
जाग गए जन थे जो सोये।
बाढ़ डाकनी सी लगती है।
याम आठ ये तो जगती है।।
अपने धाम चली तुम जाओ।
बाढ़ दुबारा अब नहि आओ।
डॉ.(मानद)सुचिसंदीप" सुचिता अग्रवाल
तिनसुकिया,असम
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