Wednesday, November 6, 2019

लघु निबंध,"चंद्रशेखर आजाद -कुछ स्मृतियाँ"



सच्चे क्रांतिकारियों के मनोभाव, व्यक्तित्व, कृतित्व एवम् सिद्धान्त ही उनके सर्वस्व होते है। उन्ही के खातिर वे हंसते हंसते अपना बलिदान भी कर देते है।
23 जुलाई 1906 को मध्य प्रदेश के भाँवरा नामक ग्राम में सीताराम तिवारी जी के घर इनका जन्म हुआ।
चंद्रशेखर आजाद सरल स्वभाव के थे। दाव पेंच, कपटी बातों से उनको सख्त नफरत थी। आजाद बचपन से ही निर्भीक और उत्साही प्रवृति के थे। आंदोलन के उस दौर में आजाद ने भी पढ़ाई छोड़कर आंदोलन में भाग लेना प्रारम्भ कर दिया था मात्र 14 या 15 की उम्र में।
एक बार मजिस्ट्रेट की अदालत में इन्होंने अपना नाम 'आजाद' पिता का 'स्वाधीन' एवम् घर 'जेलखाना' बताया था। जवाब पर बेंतों से मार भी पड़ी लेकिन जबान के पक्के आजाद हंसते रहे और अंग्रेजी सरकार की आंखों का कांटा बन गए।
उन्होंने प्रतिज्ञा कर ली थी कि कोई भी पुलिस वाला मेरे जीवित शरीर को हाथ भी नहीं लगा सकता है, और न जेल में बंद कर सकता है। " मैं सदा "आजाद" ही रहकर दिखाऊंगा। बड़े बड़े चतुर गुप्तचरों के अथक प्रयास के बावजूद भी आजाद को पकड़ पाना नामुमकिन ही था।
सभी साथी गिरफ्तार हो जाते तब भी योजनाओं को वह बखूबी अंजाम देकर अंग्रेजी सरकार की नींद हराम किये हुए थे।
वे अन्याय के विरोधी थे, स्वयं खतरा उठाकर भी वे अन्याय पीड़ितों की रक्षा हेतु दुष्ट लोगों से भिड़ जाते थे।
स्त्रियों की इज्जत करना तथा गरीबों के प्रति हमदर्दी के मानवीय गुणों की खान थे हमारे आजाद।
नेतृत्व क्षमता, भूखे रहकर भी देश की सेवा सर्वोपरि, साथियों की सुरक्षा का खयाल रखना, खतरे के समय सबसे आगे रहना तथा अंधविश्वास और पाखंड से दूरी बनाए रखना आजाद को अन्य सभी से भिन्न बनाता है।
अपने ही साथियों के विश्वास घात ने आजाद को शहीद होने पर मजबूर किया।
1931 में एक बार सुखदेव राज के साथ एक बगीचे में आजाद क्रांतिदल की वर्तमान दशा पर बात कर रहे थे तभी पुलिस के द्वारा वे घेर लिए गए तब सुखदेव को जैसे तैसे बचा कर स्वयं परिस्थिति को समझते हुए अपनी पिस्तौल से अपनी कनपटी पर गोली मार ली और आजाद वीर गति को प्राप्त हुए।
आजाद के सिद्धान्तों की पूर्ति आज भी आजादी के इतने साल बाद भी नहीं हो सकी है उनके प्रति उचित श्रद्धांजलि उनके नेक स्वप्न को साकार रूप देना होगा।
चंद्रशेखर आजाद का वास्तविक सम्मान हम देश और समाज के कल्याण की भावना को सर्वोपरि समझ कर ही कर सकते हैं।

"ईश रूप है वीर का, देवालय सम देश
जिस घट भाव नहीं भरे ,वो पत्थर अवशेष "

डॉ.(मानद)सुचिता अग्रवाल 'सुचिसंदीप'
तिनसुकिया, असम

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