Wednesday, November 6, 2019

'कुंडलियाँ छन्द,'गुरुपूर्णिमा'

माता गुरुवर प्रथम थी,आज नमन सौ बार
पिता,भ्रात,ज्ञानी सभी,वन्दन कर स्वीकार
वन्दन कर स्वीकार,परमवर गुरुवर मेरे
शुचि का बारम्बार,नमन चरणों में तेरे
साहित्यिक सद्ज्ञान,मुझे प्रतिपल मिल जाता
हर शिक्षक गुरु धाम, जहाँ बसती है माता।

सुचिताअग्रवाल "सुचिसंदीप"
तिनसुकिया,असम

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