सर्वविदित है कि भव्य समाज एवम देश के अभिनव निर्माण का श्री गणेश स्वयं से शुरू होता है।
आत्म निर्माण, परिवार निर्माण, समाज निर्माण ,देश निर्माण एवम विश्व निर्माण इन्ही सीढ़ियों पर चलते हुए हमें अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करना चाहिए।
हम स्वतंत्र भारत के स्वतंत्र नागरिक है लेकिन अधिकतर लोगों ने स्वतंत्रता का अर्थ स्वछंदता ही लगा रखा है।
हम कितना अपने पड़ोसी का ध्यान रखते हैं?
देश के लोगों के प्रति कितनी सहानुभूति है?
राष्ट्रीय सम्पति या सामाजिक सम्पति के सदुपयोग का हमें कितना ध्यान रहता है?
क्या समाज या राष्ट्र हित के लिए हम अपनी संकीर्ण मानसिकता पर अंकुश लगा सकते हैं?
इन सब प्रश्नों का उत्तर स्वयं में ढूंढें तो हमें स्वतः ही पता चल जाएगा कि हम कितने जिम्मेदार नागरिक हैं।
हमारे राष्ट्र प्रेम के उदाहरण सामने ही है अधिकतर राष्ट्रीय उद्योग, कलकारखाने, पाठशालाएं, अस्पताल आदि घाटे में चल रहे हैं।
इसका बहुत बड़ा कारण यह है कि देश की संपत्ति को हम अपनी नहीं समझते हैं।
सरकारी ईंटें चुराकर अपने घर की दीवार बनवा लेते हैं, रेलवे में टिकट की चोरी करके कुछ पैसे टी टी की पॉकेट में भरकर भ्र्रष्टाचार की आग को बढ़ावा दे ते हैं, कूड़ा कचरा जानबूझकर दूसरों के घरों के सामने या सड़कों पर गिरा देना,सरकारी संपत्ति की चोरी करना यह सब हमारी ओछी हरकतें हैं जिनका निदान हमारे ही पास है।
जिस तरह कन्या का विवाह करने, बीमारी का इलाज करवाने, बच्चे का बढ़िया। स्कूल में दाखिला करवाने के लिए हम एड़ी और चोटी का जोर लगा देते हैं तो समाज एवम देश के स्तर को ऊँचा उठाने वास्ते भी सत्प्रवतियों को सुविकसित करना ही चाहिए।
स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार तभी हो सकता है जब हम उसके लिए पात्रता सिद्ध करें।
समाज मे रहकर सहयोग की भावना को बढ़ावा देना चाहिए। एकता में बड़ी ताकत होती है । बड़े से बड़े काम हम एकता के बल पर पूरे कर सकते हैं। अतः सही राह का चुनाव करें और परिवार, समाज, देश को सही मार्गदर्शन देने में सहयोग करें।
कम से कम अपना तो सुधार करें ताकि समाज और राष्ट्र की जिम्मेदारी उठाने के लायक बन सकें।
सुचिसंदीप "सुचिता"अग्रवाल
तिनसुकिया,असम
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