नारी कोमल भाव से, मन से है गंभीर।
बैरी ममता मात की, अन्धी बहरी होय।
तनय सुता पिय प्रेम में, सारा जीवन खोय।।
बेटी है अभिमान तो, बेटा मेरा मान।
दोनों उर में हैं बसे, इनसे है सम्मान।।
रोली राखी हाथ में, आँखों में है आस।
आओ प्यारे वीर तुम, बहन बुलाये पास।।
करती लाड़ दुलार माँ, नहीं बड़ी यह बात
बालक देवर जेठ के, सभी लगाओ गात।।
चिड़िया बैठी डाल पर, गीत मधुर वह गाय।
ठंडी छाया है घनी, पेड़ लहरता जाय।।
हे करुणा सागर सुनो, कह दूँ मन की बात।
जप लूँ तेरे नाम को, चाहे दिन हो रात।
जीवन के आधार हैं ,दया, प्रेम सद्ज्ञान।
उम्र हमें छोटी मिली, काहे का अभिमान।।
नन्हा बालक गिर पड़ा, फिर भी करे प्रयास।
लक्ष्य एक चलना उसे, नहीं तोड़ता आस।।
जीवन एक प्रयास है, जीना अपना काम।
डटकर जो आगे बढे, उनका जग में नाम।।
मूक पुकारे कोख में, करती करुण पुकार
न्याय करो विपदा हरो, मैं निर्बल लाचार।
सुंदर बेणी गूंथकर,नारी करे श्रृंगार।
विविध रोग की ओषधी,पौधा हरसिंगार।।
बाधाओं को पारकर, बढ़ो लक्ष्य की ओर।
बढ़े सदा ही हौसला,देख सुहानी भोर।।
कविता धारा जाह्नवी, गोमुख हृदय विराट।
शुचिता भाव करे सदा , निर्मल जग का घाट।।
कृष्ण मीत अरु प्रीत है,कृष्ण रात अरु भोर।
कृष्ण गीत संगीत है, इस जीवन का छोर।।
आजादी जब थी मिली,सुखद खिली सी भोर।
नव भारत का जन्म था,करे नगाड़े शोर।।
मात पिता आशीष से,कटते सारे पाप।
नमन करो नित भोर ही,ये हरते संताप।।
क्रोध घनेरी रात है,प्रेम सुखद सी भोर।
क्रोध हारता सुख सदा,करता प्रेम विभोर।।
जले क्रोध की आग में,सहते पीड़ा घोर।
जीवन उनका रात है, कभी न आती भोर।।
परहित सेवा भाव से,लड़ते वीर सुपूत।
सीना ताने हैं खड़े,ध्वज रक्षा हित दूत।।
कुछ संबंधी जुर्म के,काले जिनके काम।
काले कपड़े बाँधकर,छुपा रखा निज नाम।।
नालायक उद्दण्ड ये,करते जन आघात।
हाथों में पाषाण ले,करते मन की बात।।
सुन्दर भू कश्मीर पर,आतंकी अभिशाप।
दहशत फैला कर करें,कुछ युवा यह पाप।।
छुपा रखा मुख झूठ ने,सच है सीना तान।
शर्मसार सब एक से,दूजे पर अभिमान।।
ज्यूँ आँखों में धूल की, पीड़ा सही न जाय।
वैसे ही आतंक का,कंकर बहुत सताय।।
सोमवार शिव साधना, मंगल को हनुमान।
बुध गणेश का वार है, ये गुरुवर का ज्ञान।।
बढ़ते प्रदुषण की दवा,अवगुंठन की छाँव।
पालन नर-नारी करो,शहर,नगर अरु गाँव।।
सुनलो प्रभुजी कामना,हरूँ धरा का भार।
पामर पथ पर पुण्य की,बहा सकूं मैं धार।।
सोम रूप प्रिय राधिका,मनमोहक घनश्याम।
सगुण युगल छवि है बसी,मन वृन्दावन धाम।।
शेर नाचने झट लगे,डर चाबुक की मार।
वैतरणी का भय भला,है पुण्यों से पार।।
नग गोवर्धन ने किया,इंद्र कोप पर वार।
गिरिधारी गोविंद की,लीला का यह सार।।
उम्र दौड़ती जा रही,लिया न प्रभु का नाम।
जीवन का औचित्य क्या, किया न असली काम।।
प्रीत पुलिन सम ही रहे, नव जीवन सौगात।
सूखे की हर मार को,दे सकती है मात।।
माँ चमकी आकाश में, बन पूनम का चाँद।
मचले मन आगोश को,आओ नभ को फाँद।।
उर परहित का बीज ले,नेकी जो उपजाय।
जग भी बोये यह फसल,वही बुद्ध कहलाय।।
सरयू तीरे है बसा, राम धाम साकेत।
कण-कण में श्री राम है,शुभ चंदन सम रेत।।
सन्त कबीरा कह गये, श्रेष्ठ गुरु का ज्ञान।
ढाई आखर प्रेम का,राह राम की जान।
जाति पाँति के भेद से, बड़ा सन्त का नाम।
मन शुचिता शीतल वही,पाता है सम्मान।।
सन्त कबीरा कह गये, श्रेष्ठ गुरु का ज्ञान।
ढाई आखर प्रेम का,राह राम की जान।
जाति पाँति के भेद से, बड़ा सन्त का नाम।
मन शुचिता शीतल वही,पाता है सम्मान।।
डॉ. शुचिता अग्रवाल "शुचिसंदीप"
तिनसुकिया,असम
No comments:
Post a Comment