Saturday, November 2, 2019

दोहा छन्द, "सेवा"


भ्रमर दोहा
विधा-
इस दोहे के चारों चरणों में 11वीं मात्रा लघु एवं शेष गुरु वर्ण रखना होता है।


वाणी देती वेदना,वाणी दे सम्मान।
सेवा वाणी से करें,दीनों को दें मान।।

सेवा ऐसी कीजिये,होती जो निस्वार्थ।
जो योगी हों भाव के,वो होते सिद्धार्थ।।

कोई पूजे देवता,कोई ये संसार।
जो सेवा को पूजते,वो पूजा का सार।।

सेवा के संकल्प से,पापी धोते पाप।
सारे कष्टों को हरे,कल्याणी ये जाप।।

चाबी सेवा की भरो,सोने की है खान।
लूटो सारे जोश से,पूँजी मोटी जान।।

#स्वरचित#मौलिक
डॉ.(मानद)सुचिता अग्रवाल 'सुचिसंदीप'
तिनसुकिया, आसाम

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