Wednesday, November 6, 2019

'गीता जयंती',लघु निबंध


 
श्रीमद्भगवत गीता का उपदेश भगवान श्री कृष्ण ने धर्मभूमि कर्मभूमि कुरुक्षेत्र में महाभारत के युद्ध के दौरान अर्जुन को दिया था। विक्रम संवत प्रारम्भ होने के लगभग 3000 वर्ष पूर्व जब कौरवों और पांडवों के मध्य युद्ध होने वाला था तब अर्जुन ने भगवान श्री कृष्ण से कहा कि प्रभु कृपया रथ को दोनों सेनाओं के मध्य खड़ा कर दीजिए मैं इन युद्ध की इच्छा से आए हुए लोगों को देखना चाहता हूँ ।तब भगवान ने अर्जुन से कहा कि हे पार्थ इन कुरुवंशियों को देखो। जैसे ही अर्जुन ने कौरवों की सेना में खड़े अपने भाई बंधुओं ,चाचा, मामा, ससुर, पितामह ,गुरु जन आदि को देखा वे अपना कर्तव्य भूल कर घोर शोक ग्रस्त हो गए, उन्हें कर्तव्य का ज्ञान जाता रहा।  अनेक तरह से उन्होंने भगवान से कहा कि हे प्रभु मैं भिक्षा के  द्वारा निर्वाह करना ज्यादा उचित समझता हूँ बजाए अपने परिवार वालों की हत्या करने के। इसके अलावा भी बहुत तरह की दलीलें देकर अर्जुन ने भगवान से युद्ध ना करने के लिए आग्रह किया भगवान ने कहा की -"हेअर्जुन तुम्हें अपने कर्तव्य का ज्ञान नहीं रहा है। यह धर्म युद्ध है इसमें तुम्हारा कर्तव्य युद्ध करने का ही है," लेकिन जब अर्जुन दोनों तरह की बातों के बीच में उलझे तो उन्होंने भगवान की शरण लेना ही ज्यादा उचित समझा तब बड़े ही विनम्रता और कातर भाव से उन्होंने भगवान की शरण ली और भगवान से कहा कि हे मधुसूदन मैं आपकी शरण हूँ कृपया मुझे उचित मार्ग दिखाएं ।तब परम कृपालु प्रभु ने कृपा करके अर्जुन को जो परम उपदेश दिया उसे ही भगवद्गीता कहा जाता है। भगवत गीता में कुल 18 अध्याय एवं 700 श्लोक है। भगवान ने जीव मात्र के कल्याण के लिए सरल से सरल साधन अनेक प्रकार से इस में बताएं हैं। मुख्यतः तीन प्रकार के साधनों का भगवान ने  वर्णन किया है। भक्ति योग ,ज्ञान योग, एवं कर्म योग द्वारा मनुष्य किसी भी परिस्थिति में, किसी भी वर्ण, आश्रम एवम धर्म , सम्प्रदाय में हो अपना कल्याण कर सकता है। अपनी रुचि योग्यता एवं सामर्थ्य के अनुसार उपरोक्त किसी भी साधन के द्वारा भगवत प्राप्ति के मार्ग पर अग्रसर होकर बहुत ही  शीघ्र एवं सुगमता पूर्वक अपने मनुष्य जीवन के चरम लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है ।भगवान ने भगवत गीता में स्पष्ट रूप से कहा है कि मनुष्य जीवन केवल भगवत प्राप्ति के लिए ही मिला है ,अतः प्रत्येक मनुष्य को चाहिए की इस बहुमूल्य मनुष्य शरीर को पाकर अपना कल्याण अवश्य ही कर लेना चाहिए। भगवत गीता पर अनेक भाषाओं में अनेक टिकाएं, पुस्तकें लिखी गई है।
भगवान ने  भगवत गीता का उपदेश मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी को ही दिया था अतः मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी गीता जयंती के रूप में मनाई जाती है।

शुचिता अग्रवाल,'शुचिसंदीप'

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