शोकग्रस्त पार्थ हुये,
अस्त्र-शस्त्र को न छुये,
श्याम सखा मेरे प्यारे,
मार्ग तो सुझाईये।
थर-थर काँप रहा,
बन्धुओं को भाँप रहा,
जल रही आग हिय,
उसे तो बुझाइये।
सेनाओं के बीच श्याम,
मित्र को देते हैं ज्ञान,
धर्म की पुकार जान,
युद्ध अपनाइये।
कर्म की प्रधानता है,
धर्म की महानता है,
मोह जाल त्याग कर,
अस्त्र भी उठाइये।
विधि का विधान जान,
स्वयं को निमित्त मान,
राग, द्वेष, काम छोड़,
समता ही धारिये।
भक्तों के उद्धार हेतु,
दुष्टों के संहार हेतु,
होता हूँ प्रकट में ही,
पार्थ शोक हारिये।
भ्रम सब छोड़ सखा
मोहमाया तोड़ सखा,
मुक्त तुम्हें कर दूँगा,
जीवन सुधारिये।
दिव्य रूप देख प्रभु,
नष्ट हुआ मोह प्रभु,
आपकी शरण हूँ मैं,
युध्द ललकारिये।
डॉ शुचिता अग्रवाल "शुचिसंदीप"
No comments:
Post a Comment