ना जानू मैं हिंदु- मुस्लिम,
ना जानू सिक्ख -ईसाई,
दाने कोई देता है तो,
करता कोई पानी की भरपाई।
चल उड़ पंछी निर्भय होकर
तुझे आजादी रास आयी।।
नहीं हवा का कोई मजहब,
फसल पानी पाकर लहराई,
जाति पाँति के हिस्सों में बंटकर,
क्यूँ न मानवता लज्जायी?
चल उड़ पंछी निर्भय होकर
तुझे आजादी रास आयी।।
बुद्धिहीन और मूक होकर भी,
कहाँ हमने कभी की है लड़ाई?
डाल डाल और पात पात की
सदा हमने शोभा ही बढ़ाई।
चल उड़ पंछी निर्भय होकर
तुझे आजादी रास आयी।
छोड़ दे मानव अब तू लड़ना,
खूनी होली जो खेली और खिलाई।
एक सुत्र में बंधकर तो देखो,
मानव जीवन की चिर सच्चाई।
चल उड़ पंछी निर्भय होकर,
तुझे आजादी रास आयी।
रे पागल! तुम खो दोगे वो,
जो दुनिया तुमने ही है बसाई,
मिट जाएगा कुछ न रहेगा,
जागो नयी सुबह है आयी।
चल उड़ पंछी निर्भय होकर
तुझे आजादी रास आयी।।
ना हिंदु ना मुस्लिम कोई,
सभी यहाँ है भाई भाई,
एक जिस्म और एक रक्त है,
फिर हममें कैसी ये लड़ाई?
चल उड़ पंछी साथ हमारे
हमें आजादी रास आयी
चल उड़ पंछी साथ हमारे
हमें आजादी रास आयी।।
डॉ. सुचिता अग्रवाल 'सुचिसंदीप'
तिनसुकिया, असम
ना जानू सिक्ख -ईसाई,
दाने कोई देता है तो,
करता कोई पानी की भरपाई।
चल उड़ पंछी निर्भय होकर
तुझे आजादी रास आयी।।
नहीं हवा का कोई मजहब,
फसल पानी पाकर लहराई,
जाति पाँति के हिस्सों में बंटकर,
क्यूँ न मानवता लज्जायी?
चल उड़ पंछी निर्भय होकर
तुझे आजादी रास आयी।।
बुद्धिहीन और मूक होकर भी,
कहाँ हमने कभी की है लड़ाई?
डाल डाल और पात पात की
सदा हमने शोभा ही बढ़ाई।
चल उड़ पंछी निर्भय होकर
तुझे आजादी रास आयी।
छोड़ दे मानव अब तू लड़ना,
खूनी होली जो खेली और खिलाई।
एक सुत्र में बंधकर तो देखो,
मानव जीवन की चिर सच्चाई।
चल उड़ पंछी निर्भय होकर,
तुझे आजादी रास आयी।
रे पागल! तुम खो दोगे वो,
जो दुनिया तुमने ही है बसाई,
मिट जाएगा कुछ न रहेगा,
जागो नयी सुबह है आयी।
चल उड़ पंछी निर्भय होकर
तुझे आजादी रास आयी।।
ना हिंदु ना मुस्लिम कोई,
सभी यहाँ है भाई भाई,
एक जिस्म और एक रक्त है,
फिर हममें कैसी ये लड़ाई?
चल उड़ पंछी साथ हमारे
हमें आजादी रास आयी
चल उड़ पंछी साथ हमारे
हमें आजादी रास आयी।।
डॉ. सुचिता अग्रवाल 'सुचिसंदीप'
तिनसुकिया, असम
No comments:
Post a Comment