Tuesday, November 12, 2019

मुक्त कविता, " पत्नियों के आम सवाल"


मैंने पति को परमेश्वर समझा
उनकी नजर में दासी मैं क्यूँ?
होते हैं गर दो पहिये समान
फिर वो आगे मैं पीछे क्यूँ?
पुरुषत्व की भावना के अभिमानी
नारीत्व का क्यूँ सम्मान नहीं
वो धोंस दिखाते हैं प्रतिपल
है पत्नी इतनी प्रताड़ित क्यूँ?

जिम्मेदारियां मेरी भी कम नहीं
नहीं अहसास उन्हें है क्यूँ?
सर्वोपरी वो मेरी नजर में
तुच्छ मुझे समझते है क्यूँ?
खाना खाकर उठ जाते हैं
जूठे बर्तन तक वो उठाते नहीं
अवकाश मुझे एक दिन नहीं मिलता
उपेक्षित दृष्टि डालते है क्यूँ?

बातों बातों में मायका मेरा
उनकी आँखों में खटकता है क्यूँ?
डरते डरते गिड़गिड़ाते हुए
खर्च मुझे माँगना पड़ता है क्यूँ?
रहती हूँ पूर्ण समर्पित आजीवन
प्रेम को मेरे वो समझते नहीं
प्यार के दो बोल मैं चाहूँ
वो भी बोल नहीं सकते है क्यूँ?

       "सुचिसंदीप"

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