बेटी फूल गुलाब का,घर को जो महकाय।
बहन पीर बूटी कहो, दुख में याद सताय।।
बड़ी बहन माँ सी लगे, छोटी सुता समान।
हृदय लहर शुचिता बहे, मधुरिम जैसे गान।।
बहन प्रीत की डोर है, ममता की पहचान।
कोमल मन सुखदायिनी, भाई की वह जान।।
तीन रूप में है छुपी, नारी शक्ल महान।
बहन सुता माता बनी, देवी की पहचान।।
सुचिसंदीप"सुचिता अग्रवाल
तिनसुकिया,असम
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