Saturday, November 9, 2019

ताटंक छन्द,'इज्जत'


इज्जत देना जब सीखोगे, इज्जत खुद भी पाओगे,
नेक राह पर चलकर देखो, कितना सबको भाओगे।

शब्द बाँधते हर रिश्ते को, शब्द तोड़ते नातों को।
मधुर भाव जो मन में पनपे, बहरा समझे बातों को।

तनय सुता वनिता माता सब,भूखे प्रेम के होते हैं,
कड़वाहट से व्यथित होय ये, आँसू पीकर सोते हैं।

इज्जत की रोटी जो खाते, सीना ताने जीते हैं,
नींद चैन की उनको आती, अमृत सम जल पीते हैं।

नारी का गहना है इज्जत, भावों की वह माता है,
शब्द प्रेम के सुनकर उसका , हृदय पिघल ही जाता है।

अपनों की इज्जत सब करना, अपने अपने होते हैं,
अपनों को जो ठोकर मारें, अपनी इज्जत खोते हैं।

जो बोयेंगे वो पायेंगे, फिर कैसी नादानी है,
सबकी इज्जत करना हमको, बात यही समझानी है।

डॉ. सुचिता अग्रवाल"सुचिसंदीप"
तिनसुकिया, असम

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