बड़ी घातक बिमारी है चलो हम क्रोध को त्यागें,
बढे आकार इसका तो घटे सम्मान हया भागे,
नहीं पहचान रहती है सही हम या गलत बोले,
अड़े रहना ही आदत है बढे नफरत अधी जागे।
धरे संस्कार रह जाते जिसे हमने कमाया है,
गिरे नजरों तले सबके नहीं कुछ हाथ आया है।
बड़ी पीड़ा सताती है हमें जब होश है आता,
करें धिक्कार हाय क्यूँ हमें ये क्रोध आया है।
बढे दूरी दिलों की जब आवाजें तेज आती है,
रुको, सोचो, जरा बैठो दरारें क्यूँ ये आती है,
निकालो शब्द ऐसे ना किसी को जो करे घायल
सभी को प्यार से समझो समझ हर बात आती है।
नहीं वो फैसला अच्छा जिसे हम क्रोध में करते,
वही सीखें हमारे लाल जो व्यवहार हम करते,
करें निदान करें अभ्यास नहीं अब क्रोध करना है,
चलो संकल्प से अपने शुरू यह काम है करते।
नहीं मुश्किल यदि हम सोच को शुचिता बना लेवें,
मधुर व्यवहार से अपने सखा सबको बना लेवें,
नहीं तनकर झुका सकते किसी को याद ये रक्खो,
स्वयं झुककर स्वयं को ही बड़ा सबसे बना लेवें।
सुचिता अग्रवाल," सुचिसंदीप", तिनसुकिया
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