Wednesday, November 6, 2019

लघु निबंध,"महाराणा प्रताप"




महाराणाप्रताप का व्यक्तित्व  एवम् कृतित्व आज भी उतना ही प्रेरणादायक है। यह संसार संघर्ष भूमि है, प्रत्येक मनुष्य के जीवन में समय समय पर कठिनाइयां, विपत्तियां  तो आती ही रहती है लेकिन उस समय भी अपने सिद्धांतों पर डटे रहने वाले  ही  लोगों की नजर में माननीय, आदरणीय, सम्माननीय होते हैं।
जो अपने स्वार्थ को त्यागकर दूसरों के उपकार के लिए ही पर्यटन करे या अपना सम्पूर्ण जीवन ही परोपकारिता में लगा दे वही महापुरुष कहलाते हैं। 
महाराणा प्रताप में ये दोनों ही विशेषताएं कूट कूट कर भरी थी, इसी वजह से आज सैंकड़ों वर्षों के बाद भी उनका गुणगान करके हम अपना जीवन भी श्रेष्ठ बनाने का प्रयत्न करते हैं।
महाराणा प्रताप ने अपने सीमित साधनों से ही स्वाभिमान और देश के गौरव की रक्षा  के नाम पर अकबर की विशाल सेना का डटकर मुकाबला किया था। उनके पिता महाराणा उदयसिंह निर्बल प्रकृति के विलासप्रिय राजा थे। लेकिन उन्ही का 25वां पुत्र प्रताप इतना गौरवशाली, प्रतापी हुआ कि उनका नाम इतिहास में अमर हो गया।
उन्होंने प्रतिज्ञा ली थी कि जब तक मैं चितौड़ को स्वतंत्र न कर लूंगा तब तक महलों को त्यागकर झोंपड़े में ही रहूंगा, जमीन पर सोऊंगा और पत्तल पर ही भोजन करूंगा। हल्दीघाटी के युद्ध के पश्चात राणा जी का जीवन 21 वर्षों तक जंगलों में ही व्यतीत हुआ ऐसे में भी बादशाही सेना उनके पीछे ही पड़ी रहती थी यदि प्रताप झुककर अकबर  को भारत सम्राट मां लेते तो वो भी सम्मान के साथ अपने भवन में रह सकते थे लेकिन वो ना तो कभी झुके और ना ही शरण मे आये। अपने परिवार की रक्षा के लिए बहुत सी कठिनाइयों का सामना उनको करना पड़ा था
अतः महाराणा प्रताप का जीवन देखते हुए इसमें संदेह नहीं कि त्याग और बलिदान ही ऐसे गुण है जिनके आधार पर किसी व्यक्ति को महानता और स्थायी मान्यता प्राप्त हो सकती है।

सुचिता अग्रवाल 'सुचिसंदीप', 
तिनसुकिया
असम

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