भारत नाको चने चबवायेगा,
दुश्मन हाथ मले पछतायेगा।
अधकल गगरी छलकत जाय,
अक्ल के दुश्मन आँख दिखाय।
आगे कुंवा पीछे खाई,
भाग न पायेगा हरजाई।
आसमान से गिरा खजूर पर अटका,
दुश्मन तू खायेगा अब झटका।
कबहूँ निरामिष होय न कागा,
हर भारतवासी अब जागा।
काठ की हांडी बार बार नहीं चढ़ती,
एक दिन तो मुंह की खानी पड़ती।
बकरे की माँ कब तक खैर मनाएगी,
दुश्मन तेरी अब एक नहीं चल पाएगी।
लातों के भूत बातों से नहीं मानते,
जवाब हम अब और भी है जानते।
सीधी उंगली से घी नहीं निकलता,
हत्यारों पर बातों का असर नहीं होता।
सौ सुनार की एक लुहार की,
अबकी बार खाकर देख भारत की।
हमारी बिल्ली हमीं से म्याऊं,
इन दुष्टों को मैं कैसे समझाऊं??
सुचिता अग्रवाल,'सुचिसंदीप'
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