Wednesday, November 6, 2019

दोहा छन्द,'सौरठा विधान


1.लिखें सौरठा आप, दोहे को उल्टा रचें।
   सभी हरे संताप, पढ़े सौरठा जो कोई।।

2. अठकल पाछे ताल, विषम चरण में राखिये।
    विषम अंत की चाल, तुकबंदी से ही खिले।।

3. अठकल सरल विधान, जगण शुरू में टाल दें
     दो चौकल रख ध्यान, या त्री-त्री-दो मात्त हो।।

4. सम का मात्रा भार, अठकल पाछे हो रगण ।
     सौरठ-सम का सार, तेरह मात्रा ही रखें।।

5. माँ शारद उर राख, रचें सौरठा मन हरण ।
    बढ़ती इससे साख, छंद सनातन यह मधुर।।


सुचिसंदीप,'सुचिताअग्रवाल'
तिनसुकिया, असम

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