दूर गगन से देखा,
मैंने आज,
सभी सितारे नीचे,
गाये साज,
स्वर्ग धरा पर आया,
उजली रात,
रिमझिम सोना बरसे,
ज्यूँ बरसात।
हुआ आसमाँ फीका,
शून्य अनेक,
टकरा कर के जाता,
घन प्रत्येक,
चिंतन चित्र बनाये,
पल का साथ,
टिमटिम तारा आया,
है कब हाथ।
हरी- हरी सी गलियाँ,
छोटे खेत,
भवन खिलौने दिखते,
उजली रेत,
नन्हीं-नन्हीं सड़कें,
छोटे लोग,
बना हुआ अद्भुत है,
यह संजोग।
मन धरती ने मेरा,
मोहा आज,
आसमान के सारे,
खोले राज,
चकाचौन्ध है झूठी,
धरती श्रेष्ठ,
देवों ने भी पाया,
इसको ज्येष्ठ।
डॉ. सुचिता अग्रवाल "सुचिसंदीप"
तिनसुकिया, असम
**********
विधान-
बरवै अर्द्धसम मात्रिक छन्द है। इसके प्रथम एवं तृतीय चरण में 12-12 मात्राएँ तथा द्वितीय एवं चतुर्थ चरण में 7-7 मात्राएँ हाती हैं। सम चरणों के अन्त में 21 होता है।
मैंने आज,
सभी सितारे नीचे,
गाये साज,
स्वर्ग धरा पर आया,
उजली रात,
रिमझिम सोना बरसे,
ज्यूँ बरसात।
हुआ आसमाँ फीका,
शून्य अनेक,
टकरा कर के जाता,
घन प्रत्येक,
चिंतन चित्र बनाये,
पल का साथ,
टिमटिम तारा आया,
है कब हाथ।
हरी- हरी सी गलियाँ,
छोटे खेत,
भवन खिलौने दिखते,
उजली रेत,
नन्हीं-नन्हीं सड़कें,
छोटे लोग,
बना हुआ अद्भुत है,
यह संजोग।
मन धरती ने मेरा,
मोहा आज,
आसमान के सारे,
खोले राज,
चकाचौन्ध है झूठी,
धरती श्रेष्ठ,
देवों ने भी पाया,
इसको ज्येष्ठ।
डॉ. सुचिता अग्रवाल "सुचिसंदीप"
तिनसुकिया, असम
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विधान-
बरवै अर्द्धसम मात्रिक छन्द है। इसके प्रथम एवं तृतीय चरण में 12-12 मात्राएँ तथा द्वितीय एवं चतुर्थ चरण में 7-7 मात्राएँ हाती हैं। सम चरणों के अन्त में 21 होता है।
वाह सुचि बरवै छंद में आसमान से धरती का नज़ारा का सुंदर वर्णन।
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