Wednesday, September 29, 2021

सुमेरु छंद "माँ"

 सुमेरु छंद "माँ"


परम जिस धाम में, हो तुम गयी माँ।

सुमन अर्पण तुम्हें, ममतामयी माँ।।

पुकारा यूँ लगा, तुमने कहीं से।

लगी फिर रोशनी, आती वहीं से।।


नहीं दिखती मगर, सूरत तुम्हारी।

सजल आँखें तुम्हें, ढूँढ़े हमारी।।

हृदय की चोट वो, अब तक हरी है।

व्यथित मन हो रहा, आँखें भरी है।।


उजाले हैं बहुत, लेकिन डरा हूँ।

उदासी है घनी, तम से भरा हूँ।।

तुम्हें हर बात की, चिंता सताती।

कहाँ कब क्या करूँ, कहकर बताती।।


वृहद जंजाल सा, जग एक मेला।

कहाँ तुम बिन रहा, मैं हूँ अकेला।।

पकड़ आँचल सदा, तेरा चला हूँ।

सदा सानिध्य में, तेरी पला हूँ।।

 

सहारा था मुझे, बस एक तेरा।

कहो तुम बिन यहाँ, अब कौन मेरा?

सभी कुछ है मगर, तेरी कमी है।

छिपी मुस्कान में, मेरी नमी है।।


सभी खुशियाँ मिले, तुमको जहाँ हो।

न व्याकुलता तुम्हें, पलभर वहाँ हो।।

अगर खुश तुम रहो, खुश मैं रहूँगा।

विरह की वेदना, हँसकर सहूँगा।।

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सुमेरु छंद विधान-


सुमेरु छंद एक सम पद मात्रिक छंद है, जिसमें प्रति पद १९ मात्रा रहती हैं। दो-दो  या चारों पद समतुकांत होते हैं।

सुमेरु छंद में  12,7 अथवा 10,9 पर  दो तरह से यति निर्वाह  किया जा सकता है।

इसका मात्रा विन्यास निम्न है-

1222 1222 122

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शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप'

तिनसुकिया, असम


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