Thursday, September 12, 2019

मुक्त कविता,"हुई फिर देश में हिंसा"

"हुई फिर देश में हिंसा"


धधकती आग बरसी है सभी डरते नजर आये
हुई फिर देश में हिंसा लहू बहते नजर आये।

अहिंसा के पुजारी जो वही बेमौत मरते हैं
लगी ज्वाला दिलों में अब सभी कहते नजर आये।

इशारों पर भभक उठता शहर सारा वतन देखो
विषैले नाग सत्ता के हमें डसते नजर आये

खिलौने बन गए हैं हम चला व्यापार जोरों से
निलामी बढ़ रही शासक सभी बिकते नजर आये।

बुझी को फिर जलाते औरशोले भी है भड़काते
यही आतँक की शैली सभी रचते नजर आये।।

करे चित्कार मांगे न्याय जो निर्दोष थे बन्दे
बहे आँसू करे फरियाद वो डरते नजर आये।


लगा दो जोर सब अपना बुझादो आग के गोले
गिरो बन गाज दुश्मन पे सभी मरते नजर आये।


सुचिता अग्रवाल"सुचिसंदीप",
तिनसुकिया,असम
("मन की बात")


No comments:

Post a Comment

Featured Post

शुद्ध गीता छंद, "गंगा घाट"

 शुद्ध गीता छंद-  "गंगा घाट" घाट गंगा का निहारूँ, देखकर मैं आर पार। पुण्य सलिला, श्वेतवर्णा, जगमगाती स्वच्छ धार।। चमचमाती रेणुका क...