Thursday, September 12, 2019

मुक्त कविता,"मूक चीख"


शिशु का विकास नहीं हो रहा है
या जननी की सेहत पर
बुरा प्रभाव पड़ रहा है,
कानूनन जुर्म होने के बावजूद
इन बहानों की आड़ में,
मासूम शिशुओं का कोख में ही
कत्ल खुले आम हो रहा है।
"बच्ची डरी सहमी सी है
अहसास उसे भी हो गया
उसके सुरक्षित क्षेत्र पर
हमला हो रहा है।
दिल की धड़कन उसकी
जोरों से बढ़ने लगी,
कोख में ही
इस छोर से उस छोर तक
छटपटाती हुई सिकुड़ने लगी।
औजार बच्ची को ढूंढ ढूँढ कर
टुकड़े टुकड़े कर रहा है
पहले कमर फिर पैर
फिर सिर को
बड़ी निर्ममता से काट रहा है।"
चंद लम्हों में एक
निरपराध, निहत्थे जीव की
हत्या हो गयी।
फिर कभी न चहकने वाली
नन्ही सी जान
धरती पर पांव रखने से पहले ही
धरती में समा गई।
"क्या न्याय के अंधे देवता को
यह मूक चीख सुनाई नहीं देती?
क्यूँ हत्यारे माँ- बाप को
हत्या के जुर्म में
सजा नहीं होती?
अहिंसा का संदेश देने वाले,
बुद्ध , महावीर और गांधी की भूमि पर
यह जघन्य हिंसा
क्यों हो रही है?
स्वयं बच्ची की हत्या करके
क्यूँ हत्यारी माँ
मातृत्व का गला घोंट रही है?
जो आगोश में आने से पहले ही
कुचल दी जाती है।
यह प्रश्न मानव जाति से
हर वह मासूम कर रही है
"मूक चीख"
न्याय मांग रही है।

सुचिता अग्रवाल"सुचिसंदीप"
तिनसुकिया, असम
("दर्पण")

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