"जयदयालजी गोयन्दका"
देवपुरुष जीवन गाथा से,प्रेरित जग को करना है,
संतों की अमृत वाणी को,अंतर्मन में भरना है।
है सौभाग्य मेरा कुछ लिखकर,कार्य करूँ जन हितकारी,
शत-शत नमन आपको मेरा,राह दिखायी सुखकारी।१।
संत सनातन पूज्य सेठजी,जयदयालजी गोयन्दका,
मानव जीवन के हितकारी,एक अलौकिक सा मनका।
रूप चतुर्भुज प्रभु विष्णु का,राम आचरण अपनाये,
उपदेशों को श्री माधव के,जन-जन तक वो पहुँचाये।२।
संवत शत उन्नीस बयालिस, ज्येष्ठ कृष्ण षष्ठी पावन,
चूरू राजस्थान प्रान्त में,जन्मे ये भू सरसावन।।
माता जिनकी श्यो बाई थी,पिता खूबचँद गोयन्दका,
संत अवतरण सुख की बेला,धरती पर दिन खुशियों का।३।
दिव्य रूप बालक का सुंदर,मुखमण्डल तेजस्वी था,
पाँव दिखे पलना में सुत के,लगता वो ओजस्वी था।।
आध्यात्मिक भावों का बालक,दया,प्रेम,सद्भाव लिये,
जयदयालजी ने आजीवन,जन मानस कल्याण किये।४।
पहले करनी फिर कथनी ही,मूलमंत्र जीवन का था,
सत्य,अहिंसा,दूरदर्शिता,समता भाव समाहित था।
गीता,रामायण,पुराण सब,बचपन में पढ़ डाले थे,
राह पकड़कर गीता की तब,गूढ़ सभी खंगाले थे।५।
कार्यक्षेत्र बाँकुड़ कलकत्ता,वैश्य वर्ण निष्कामी थे,
तन,मन,धन पर सेवा खातिर,श्री माधव अनुगामी थे।
धोती,चादर और चौबन्दी, केशरिया पगड़ी पहने,
परम प्रचारक प्रभु वाणी के,गीतामय धारे गहने।६।
दिव्य प्रेम का अनुभव करके,तत्व आपने जो जाना,
जनम-मरण के दुख हरने का,साधन उसको ही माना।
सहज मार्ग भगवत्प्राप्ति का,ढूँढन की मन में धारी,
चाहे कोई भी हो अवस्था,है हर मानव अधिकारी।७।
*गीता प्रचार का मार्ग*
दृष्टि टिकी गीता के इन दो,प्रेरित करते श्लोकों पर,
भगवत आज्ञा पालन हेतु, हुये अग्रसर वो तत्पर,
"निसन्देह मेरा वो होगा,गीता गूढ़ प्रचार करे,
अतिशय प्रिय वो भक्त मुझे जो,गीता का संज्ञान धरे।"
।८।
जन मानस उद्धार हेतु जब,मार्ग मिला उनको शाश्वत,
स्वयं चले फिर सबको चलाया,हुये पूर्ण तब ही आश्वश्त।
युगदृष्टा ने अटल सत्य की,राह सुलभ बनवायी थी,
घर-घर गीता,जन-जन गीता,यही सोच अपनायी थी।९।
*गीताप्रेस स्थापना*
तत्व ज्ञान गीता का पाकर,हुआ सुवासित जीवन था,
जन-मन में कण विकसित करना,भाव प्रबल उनका धन था,
गहन सीप में बसती मानो,गीता पुस्तक मोती थी,
उत्कंठा भक्तों को गीता,पढ़ने की नित होती थी।१०।
थी दूभर गीता की प्रतियाँ, प्रसरण में भी रोड़ा था,
निष्ठावान भक्त ने लेकिन, बाधाओं को तोड़ा था।
सुलभ मुल्य अरु स्वच्छ कलेवर,टंकण त्रुटियों रहित रहे,
सहज प्राप्त हो पाठक गण को,सही अर्थ के सहित रहे।११।
भक्तों के स्वाध्याय हेतु ही,निश्चित साधन ढूँढ़ लिया,
था उन्नीस सौ तेईस सन् जब,दुविधा का उपचार किया।
गोरखपुर में हुई स्थापना,गीता प्रेस नाम ठाना,
जीवन उद्धारक वचनामृत,घर-घर में था पहुँचाना।१२।
दिव्य दृश्टि हम कार्यप्रणाली,बुरी चला नहि पायेंगे,
अगर कार्य अच्छे हैं अपने,तो भगवान चलायेंगे।
कार्यक्षेत्र में हाथ बँटाने, स्वयं प्रभु ने रूप धरे,
विविध कार्य कर कमलों से कर,धर्म ग्रँथ भंडार भरे।१३।
सत् साहित्य तथा सद्भावों,धर्म हेतु विस्तार किया,
उनके करकमलों ने जग को,पुस्तक का भंडार दिया।
भाईजी मौसेरे भाई,सहज समर्पित थे आगे,
प्रभु सेवक निःस्वार्थ भाव से,योगदान करने लागे।१४।
धर्म सनातन गौरव संस्कृति,तत्व गूढ़ प्रेरित करते,
मुख्य द्वार है हस्तकला की,विविध शैलियों को भरते।
दीवारों पर संगमरमर की,पूरी गीता खुदवायी,
दोहे,चौपाई, प्रभु लीला,भक्तों के हिय को भायी।१५।
षोडसमन्त्र नाम जप करने,कल्याण पत्र प्रारम्भ हुआ।
दैवी गुण को ग्रहण कराने,साधक संघ आरम्भ हुआ।
कल्याणी "कल्याण" मासिका,विविध पुस्तकें छपती हैं,
सर्वाधिक ही धर्म पुस्तकें,अब तक वहीं पनपती हैं।१६।
*गीता भवन ऋषिकेश स्थापना*
माँ गंगा की निर्मल धारा,कल-कल नित जहँ बहती हों,
शुचितामय पावन मिट्टी भी,हरि गाथा बस कहती हों।।
कोलाहल से दूर कहीं बस,राम नाम को सुनना था,
ऐसी पावन पुण्य भूमि को,सत्संग हेतु चुनना था।१७।
उत्तराखण्ड पवित्र धरा पर,अद्भुत यह संयोग मिला,
ऋषिकेश स्वर्गाश्रम में तब,भाव भक्ति का पुष्प खिला।
सघन वनों से घिरा हुआ पथ,साधन जीवन के थोड़े,
प्रबल इरादों से भक्तों ने,बाधाओं से मन जोड़े।१८।
गंगा तट वटवृक्ष अलौकिक,परम् शांतिप्रिय स्थान लगा,
पूज्य सेठजी के मन में तब,प्रभु का ही संदेश जगा।।
गीता भवन नींव रख डाली,पुण्य काज उनके न्यारे।
भगवत्चिंतन हिय में धारे,भक्त लगे आने सारे।१९।
भक्तों की सुख सुविधा के हित,साधन जुटते गये सभी,
उसी नींव पर खड़े हुए हैं,सातों गीता भवन अभी।
दुर्लभ मानव जीवन सद्गति,सत्संगत से होती है,
अंधकार को दूर भगाये, सत्संग ऐसी ज्योति है।२०।
"प्रेरक प्रसंग"
(१)
एक बार हरिजन बस्ती में,आग लगी थी जोरों से,
हृदय फटा सुन बच्चों की तब,क्रंदन हाहाकारों से,
बस्ती नव-निर्माण कराया,खुशियाँ दामन में भर दी,
लेकिन हरिजन किस्मत ने भी,बार-बार हद ही कर दी।२१।
समझाया लोगों ने प्रभु भी,नहीं चाहते घर बनना,
था जवाब कर्तव्य निभायें,अहम कर्म पर दुख हरना।
तीन बार आवास जले थे,फिर निर्माण कराया था,
दुखियों को सहयोग दिया था,घर हर बार बसाया था।२२।
(२)
एक पड़ौसी रक्त पिपासु,अनबन उनसे रखता था,
लेकिन देवपुरुष निश्छल मन,सदा शान्त ही रहता था,
मंडा ब्याह कन्या का उसकी,बाराती आ पहुँचे थे,
घर वृद्धा परलोकगमन से,संकट बादल छाये थे।२३।
भूल गये सब बाराती को,दाह-क्रिया में लगे सभी,
सुनी सेठजी ने जब घटना,भागे स्टेशन तुरन्त तभी,
समुचित,सुंदर,सौम्य व्यवस्था,बाराती की करवाई,
उत्तर "क्या उपकार किया है,मेरी इज्जत थी भाई"।२४।
एक बार फल विक्रेता ने,छल से फल तौले थोड़े,
थी फटकार लगाई उसको,बातों के मारे कोड़े,
"बात नहीं कम फल हैं तौले,नरक सुनिश्चित लगता है,
देख अहित सकती नहि आँखें,अतिशय हृदय सुलगता है"।२५।
*उपंसहार*
बिन माँगे प्रभु सब देते हैं,माँग तुच्छता होती है,
भक्त सजग निष्काम भाव के,दिव्य प्रेम की ज्योति है।
प्रेरक जीवन के प्रसंग को,पढ़कर लाभ उठाना है,
मानव सद्गति एकमात्र बस,धारण करके पाना है।२६।
विज्ञ,तपस्वी,व्याख्याता वे,वक्ता थे सद्भावों के,
दृढ़ प्रतिज्ञ स्वयं रहते थे,अपने सभी सुझावों के।
गीता तत्व विवेचनी में सब,गीताजी के सार दिये,
रची गजल गीता भी उन ने,गीता अति लघु रूप लिये।२७।
खुद की मान बड़ाई से उठ,चले वही सच्चा साधक,
फोटो, स्मारक आदि बनाना,प्रभु पूजा में है बाधक।
गायत्री,गोविंदा,गंगा,गीता,गौ सेवा करना,
प्राण बसे थे इन पाँचों में,भाव,कर्म का यह झरना।२८।
कर्मक्षेत्र को धर्मक्षेत्र में,परिवर्तित जो करते हैं,
ऐसे दुर्लभ संत धरा पर,सदियों बाद विचरते हैं।
अमृत उपदेशों को उनके,जन-जन तक पहुँचाना है,
आत्मसात कर जीवन में भी,कर चरितार्थ दिखाना है।२९।
लगता है वो एक मिशन पर,प्रभु सेवक बन आये थे,
मानव जीवन उद्देश्यों को,कर धारण बतलाये थे।
"हंस अकेला उड़ जाएगा",रे मानव उद्धार करो,
सहज सुगम सद्गति पथ बढ़ना,लक्ष्य एक चित मांय धरो।३०।
अब भी विद्यमान कण-कण में,रहते थे वो कब तन में,
हृदय बसी गीता का मधुरस,बाँट रहे वो जन-जन में।
भौतिक तन से ऊपर उठकर,जिसने जग को तारा है,
हे संतों के संत आपको,शत-शत नमन हमारा है।३१।
शुचिता अग्रवाल "शुचिसंदीप"
तिनसुकिया, असम
शुचिता बहन परम भगवत अनुरागी सेठजी जयदयालजी गोयन्का का जीवन चरित और उनके जीवन के प्रेरक प्रसंगों का चित्रण तुम्हारी सशक्त लेखनी द्वारा लावणी छंद में अत्यंत भव्य रूप से हुआ है। यह तुम्हारे ऊपर भगवत्कृपा ही है जो तुम उनके जीवन के अंशों का प्रसार अपनी कविता के माध्यम से जन जन तक प्रसारित करने का माध्यम बनी हो।
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