मधुर ध्वनि छन्द,'वर्षा'
बजत मधुर ध्वनि,चंचल चितवनि,अति सुखकारी,
मानो खिलखिल,सहज अकुंठिल,शिशु किलकारी।
दामिनि दमकी,बूँदें चमकी,बरसा पानी,
जन-जन गाये,अति हरषाये,रुत मस्तानी।
कल-कल नदियाँ,मृदु पंखुड़ियाँ,खग भी चहके,
जग यह सारा,गा मल्हारा,धुन पर बहके।
नन्ही बूँदें,आँखें मूँदे, खूब इतरती,
कभी इधर तो,कभी उधर वो,नाच बरसती।
उमड़-घुमड़ घन,बाजे झन-झन,खुशियाँ छाई,
मुदित मोहिनी,है सुगंधिनी, सी पुरवाई।
सौंधी-सौंधी, शुद्ध सुगन्धी,मिट्टी भायी,
जगत सहेली,छैल छबीली,वर्षा आयी।
हरित चूनरी,देह केशरी,धवल घाघरा,
छटा चहकती,नाच बहकती,बाँध घूघरा।
महके उपवन,लहके सब वन,निखरा आँगन,
निरखे घन मन,धरती दुल्हन,रूप सुहागन।
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मधुर ध्वनि छन्द विधान-
यह 24 मात्राओं का मात्रिक छन्द है।
क्रमशः 8,8,8 पर यति आवश्यक है।
चार चरणों के इस छन्द में दो या चारों चरण समतुकांत होने चाहिए। अन्तर्यति तुकांतता से छंद का माधुर्य बढ़ जाता है,वैसे यह आवश्यक नहीं है।
इसी छंद के चार पदों के प्रारंभ में एक दोहा जोड़ देने से प्रसिद्ध कुण्डलिया छंद की तर्ज का एक नया छंद बन जाता है जो "अमृत ध्वनि" के नाम से प्रसिद्ध है। "अमृत ध्वनि" में भी दोहा जिन शब्दों से शुरू होता है उन्हीं पर छंद समाप्त होता है।
जैसे-
"रूप सुहागन सा सजा, रिमझिम बरसै मेह।
थिरकै धरणी मग्न हो, हरित चूनरी देह।।
हरित चूनरी,देह केशरी,धवल घाघरा,
छटा चहकती,नाच बहकती,बाँध घूघरा।
महके उपवन,लहके सब वन,निखरा आँगन,
निरखे घन मन,धरती दुल्हन,रूप सुहागन।"
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शुचिता अग्रवाल,'शुचिसंदीप'
तिनसुकिया, असम
छंद मधुर ध्वनि, शुचिता रच दी, अति हर्षावन।
ReplyDeleteपानी बरसे, धरती सरसे, शोभा पावन।
“अमृत ध्वनि” का, रूप साथ में, इस में भर दी।
इन छंदों में, भाव खोल के, सारे धर दी।।