Tuesday, June 18, 2019

गीत,"बांसुरी की अभिलाषा"

                  'लावणी छन्द'

अधरों की प्यासी बाँसुरिया,दूर प्रिये दूरी करदो।
वल्लभ की मैं बनूँ वल्लभा,अभिलाषा पूरी करदो।

मैं वाद्यों की राजकुमारी,हे वृज-राजकुमार सुनो।
तुझ सँग नाम जुड़े मेरा ही,जनम-जनम का साथ चुनो।
मैं बंशी तू बंशीधर बन,जग ये सिंदूरी करदो।
अधरों की प्यासी बाँसुरिया,दूर प्रिये दूरी करदो।

नीरस प्राणहीन मत समझो,मंत्रमुग्ध मैं कर दूँगी।
एकाकीपन का भय तुमसे,साथ सदा रह हर लूँगी।
बनी कृष्ण के लिए बांसुरी,अनुनय मंजूरी कर दो।
अधरों की प्यासी बाँसुरिया,दूर प्रिये दूरी करदो।

सुचिता अग्रवाल 'सुचिसंदीप'
तिनसुकिया, असम
17.6.2019

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