दिंडी छंद
'सुख सार'
प्रश्न सदियों से, मन में है आता।
कहाँ असली सुख, मानव है पाता।।
लक्ष्य सबका ही, सुख को है पाना।
जतन जीवन भर, करते सब नाना।।
नियति लेने की, सबकी ही होती।
यहीं खुशियाँ सब, सत्ता हैं खोती।।
स्वयं कारण हम, सुख-दुख का होते।
वही पाते हैं, जो हम हैं बोते।।
लोभ, छल, ममता, मन में है भारी।
सदा मानवता, इनसे ही हारी।।
सहज, दृढ होकर, सद्विचार धारें।
प्रेम भावों से, कटुता को मारें।।
सर्वदा सुखमय, जीवन वो पाते।
खुशी देकर जो, खुशियाँ ले आते।।
प्रेरणा पाकर, हम सब निखरेंगे।
नहीं जीवन में, फिर हम बिखरेंगे।
◆◆◆◆◆◆◆
दिंडी छंद विधान-
दिंडी छंद एक सम पद मात्रिक छंद है, जिसमें प्रति पद १९ मात्रा रहती हैं जो ९ और १० मात्रा के दो यति खंडों में विभाजित रहती हैं। दो-दो या चारों पद समतुकांत होते हैं।
दोनों चरणों की मात्रा बाँट निम्न प्रकार से है।
त्रिकल, द्विकल, चतुष्कल = ३ २ ४ = ९ मात्रा।
छक्कल, दो गुरु वर्ण (SS) = १० मात्रा।
छक्कल में ३ ३, या ४ २ हो सकते हैं।
३ के १११, १२, २१ तीनों रूप मान्य।
●●●●●●●
शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप'
तिनसुकिया, असम
No comments:
Post a Comment