Saturday, October 16, 2021

योग छंद "विजयादशमी"

 योग छंद 

"विजयादशमी"


अच्छाई जब जीती, हरा बुराई।

जग ने विजया दशमी, तभी मनाई।।

जयकारा गूँजा था, राम लला का।

हुआ अंत धरती से, दुष्ट बला का।।


शक्ति उपासक रावण, महाबली था।

ग्रसित दम्भ से लेकिन, बहुत छली था।

कूटनीति अपनाकर, सिया चुराई।

हर कृत्यों में उसके, छिपी बुराई।।


नहीं धराशायी हो, कभी सुपंथी।

सर्व नाश को पाये, सदा कुपंथी।

चरम फूट पापों का, सदा रहेगा।

कब तक जग रावण के, कलुष सहेगा।।


मानवता की खातिर, शक्ति दिखाएँ।

जग को सत्कर्मों की, भक्ति सिखाएँ।।

राम चरित से जीवन, सफल बनाएँ।

धूम धाम से हम सब, पर्व मनाएँ।।

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योग छंद विधान-


योग छंद एक सम पद मात्रिक छंद है, जिसमें प्रति पद 20 मात्रा रहती हैं। पद 12 और 8 मात्रा के दो  यति खंडों में विभाजित रहता है। 12 मात्रिक प्रथम चरण में चौकल अठकल का कोई भी संभावित क्रम लिया जा सकता है। 

इसकी तीन संभावनाएँ हैं जो तीन चौकल, चौकल + अठकल और अठकल + चौकल 

के रूप में है।


8 मात्रिक दूसरे चरण का विन्यास निम्न 

है -

त्रिकल, लघु, तथा दो दीर्घ वर्ण (SS) = 3+1+4 = 8 

त्रिकल के तीनों (12, 21, 111) रूप मान्य है। 


दो-दो  या चारों पद समतुकांत होते हैं।

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शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप'

तिनसुकिया, असम

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