(विधा-लावणी छन्द, गीत)
पूजा करने प्रतिमाओं की,हम मन्दिर में जाते हैं।
जिस घर मात-पिता खुश रहते,उस घर ईश्वर आते हैं।
असर दुआ में इतना इनकी,बाधाएँ टल जाती है।
कदमों में खुशियाँ दुनिया की सारी चलकर आती है।
पालन करने स्वयं विधाता घर में ही बस जाते हैं।
जिस घर मात-पिता खुश रहते,उस घर ईश्वर आते हैं।।
इस जीवन में कर्ज कभी भी चुका नहीं जिनका सकते।
बच्चों के सारे ही सपने जिनकी आँखों में पलते।
दुख से लड़कर बच्चों के हिस्से में खुशियाँ लाते हैं।
जिस घर मात-पिता खुश रहते,उस घर ईश्वर आते
हैं।।
मुट्ठी में दुनिया की सारी दौलत आ ही जाती है।
जब तक ठंडी छाँव पिता की माँ ममता बरसाती है।
खुशकिस्मत होते जो इनका साथ अधिकतम पाते हैं।
जिस घर मात-पिता खुश रहते,उस घर ईश्वर आते
हैं।।
#स्वरचित
डॉ.सुचिता अग्रवाल "सुचिसंदीप"
तिनसुकिया, असम
पूजा करने प्रतिमाओं की,हम मन्दिर में जाते हैं।
जिस घर मात-पिता खुश रहते,उस घर ईश्वर आते हैं।
असर दुआ में इतना इनकी,बाधाएँ टल जाती है।
कदमों में खुशियाँ दुनिया की सारी चलकर आती है।
पालन करने स्वयं विधाता घर में ही बस जाते हैं।
जिस घर मात-पिता खुश रहते,उस घर ईश्वर आते हैं।।
इस जीवन में कर्ज कभी भी चुका नहीं जिनका सकते।
बच्चों के सारे ही सपने जिनकी आँखों में पलते।
दुख से लड़कर बच्चों के हिस्से में खुशियाँ लाते हैं।
जिस घर मात-पिता खुश रहते,उस घर ईश्वर आते
हैं।।
मुट्ठी में दुनिया की सारी दौलत आ ही जाती है।
जब तक ठंडी छाँव पिता की माँ ममता बरसाती है।
खुशकिस्मत होते जो इनका साथ अधिकतम पाते हैं।
जिस घर मात-पिता खुश रहते,उस घर ईश्वर आते
हैं।।
#स्वरचित
डॉ.सुचिता अग्रवाल "सुचिसंदीप"
तिनसुकिया, असम
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