कार्तिक चौथ घड़ी शुभ आयी। सकल सुहागन मन हर्षयी।।
पर्व पिया हित सभी मनाती। चंद्रोदय उपवास निभाती।।
करवे की महिमा है भारी। सज-धज कर पूजे हर नारी।।
सदा सुहागन का वर हिय में। ईश्वर दिखते अपने पिय में।।
जीवनधन पिय को ही माना। जनम-जनम तक साथ निभाना।।
कर सौलह श्रृंगार लुभाती। बाधाओं को दूर भगाती।।
माँग भरी सिंदूर बताती। पिया हमारा ताज जताती।।
बुरी नजर को दूर भगाती। काजल-टीका नार लगाती।।
गजरे की खुशबू से महके। घर-आँगन खुशियों से चहके।।
सुख-दुख के साथी बन जीना। कहता मुँदरी जड़ा नगीना।।
साड़ी की शोभा है न्यारी। लगती सबसे उसमें प्यारी।।
बिछिया पायल जोड़े ऐसे। सात जनम के साथी जैसे।।
प्रथा पुरानी सदियों से है। रहती लक्ष्मी नारी में है।।
नारी शोभा घर की होती। मिटकर भी सम्मान न खोती।।
चाहे स्नेह सदा अपनों से। जाना नारी के सपनों से।।
प्रेम भरा संदेशा देता। पर्व दुखों को है हर लेता।।
उर अति प्रेम पिरोये गहने। सारी बहनें मिलकर पहने।।
होगा चाँद गगन पर जब तक। करवा चौथ मनेगी तब तक।।
डॉ.(मानद)सुचिता अग्रवाल "सुचिसंदीप"
तिनसुकिया, असम
चौपाई छंद - विधान
चौपाई 16 मात्रा का बहुत ही व्यापक छंद है। यह चार चरणों का सममात्रिक छंद है। इसके एक चरण में आठ से सोलह वर्ण तक हो सकते हैं। दो दो चरण समतुकांत होते हैं। चरणान्त गुरु या दो लघु से होना आवश्यक है।
चौपाई छंद चौकल और अठकल के मेल से बनती है। चार चौकल, दो अठकल या एक अठकल और दो चौकल किसी भी क्रम में हो सकते हैं। समस्त संभावनाएं निम्न हैं।
4-4-4-4, 8-8, 4-4-8, 4-8-4, 8-4-4
कल निर्वहन केवल समकल शब्द द्विकल, चतुष्कल, षटकल से संभव है। अतः एकल या त्रिकल का प्रयोग करें तो उसके तुरन्त बाद विषम कल शब्द रख समकल बना लें। जैसे 3+3 या 3+1 इत्यादि। चौकल और अठकल के नियम निम्न प्रकार हैं जिनका पालन अत्यंत आवश्यक है।
चौकल:- (1) प्रथम मात्रा पर शब्द का समाप्त होना वर्जित है। 'करो न' सही है जबकि 'न करो' गलत है।
(2) चौकल में पूरित जगण जैसे सरोज, महीप, विचार जैसे शब्द वर्जित हैं।
अठकल:- (1) प्रथम और पंचम मात्रा पर शब्द समाप्त होना वर्जित है। 'राम कृपा हो' सही है जबकि 'हो राम कृपा' गलत है क्योंकि राम शब्द पंचम मात्रा पर समाप्त हो रहा है। यह ज्ञातव्य है कि 'हो राम कृपा' में विषम के बाद विषम शब्द पड़ रहा है फिर भी लय बाधित है।
(2) 1-4 और 5-8 मात्रा पर पूरित जगण शब्द नहीं आ सकता।
(3) अठकल का अंत गुरु या दो लघु से होना आवश्यक है।
जगण प्रयोग:-
(1) चौकल की प्रथम और अठकल की प्रथम और पंचम मात्रा से पूरित जगण शब्द प्रारम्भ नहीं हो सकता।
(2) चौकल की द्वितीय मात्रा से जगण शब्द के प्रारम्भ होने का प्रश्न ही नहीं है क्योंकि प्रथम मात्रा पर शब्द का समाप्त होना वर्जित है।
(3) चौकल की तृतीय और चतुर्थ मात्रा से जगण शब्द प्रारम्भ हो सकता है।
किसी भी गंभीर सृजक का चौपाई पर अधिकार होना अत्यंत आवश्यक है। आल्हा, ताटंक, लावणी, सार, सरसी इत्यादि प्रमुख छन्दों का आधार चौपाई ही है क्योंकि प्रथम यति की 16 मात्रा चौपाई ही है।
चौपाई छंद चौकल और अठकल के मेल से बनती है। चार चौकल, दो अठकल या एक अठकल और दो चौकल किसी भी क्रम में हो सकते हैं। समस्त संभावनाएं निम्न हैं।
4-4-4-4, 8-8, 4-4-8, 4-8-4, 8-4-4
कल निर्वहन केवल समकल शब्द द्विकल, चतुष्कल, षटकल से संभव है। अतः एकल या त्रिकल का प्रयोग करें तो उसके तुरन्त बाद विषम कल शब्द रख समकल बना लें। जैसे 3+3 या 3+1 इत्यादि। चौकल और अठकल के नियम निम्न प्रकार हैं जिनका पालन अत्यंत आवश्यक है।
चौकल:- (1) प्रथम मात्रा पर शब्द का समाप्त होना वर्जित है। 'करो न' सही है जबकि 'न करो' गलत है।
(2) चौकल में पूरित जगण जैसे सरोज, महीप, विचार जैसे शब्द वर्जित हैं।
अठकल:- (1) प्रथम और पंचम मात्रा पर शब्द समाप्त होना वर्जित है। 'राम कृपा हो' सही है जबकि 'हो राम कृपा' गलत है क्योंकि राम शब्द पंचम मात्रा पर समाप्त हो रहा है। यह ज्ञातव्य है कि 'हो राम कृपा' में विषम के बाद विषम शब्द पड़ रहा है फिर भी लय बाधित है।
(2) 1-4 और 5-8 मात्रा पर पूरित जगण शब्द नहीं आ सकता।
(3) अठकल का अंत गुरु या दो लघु से होना आवश्यक है।
जगण प्रयोग:-
(1) चौकल की प्रथम और अठकल की प्रथम और पंचम मात्रा से पूरित जगण शब्द प्रारम्भ नहीं हो सकता।
(2) चौकल की द्वितीय मात्रा से जगण शब्द के प्रारम्भ होने का प्रश्न ही नहीं है क्योंकि प्रथम मात्रा पर शब्द का समाप्त होना वर्जित है।
(3) चौकल की तृतीय और चतुर्थ मात्रा से जगण शब्द प्रारम्भ हो सकता है।
किसी भी गंभीर सृजक का चौपाई पर अधिकार होना अत्यंत आवश्यक है। आल्हा, ताटंक, लावणी, सार, सरसी इत्यादि प्रमुख छन्दों का आधार चौपाई ही है क्योंकि प्रथम यति की 16 मात्रा चौपाई ही है।
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