सामने है मंजिल फिर भी दिखाई नहीं पड़ती
रुके रुके से है कदम क्यूं राहें आगे नहीं बढ़ती।
प्रतिभा है अगर आपमें क्यूं उजागर नहीं करते
संकोची बनकर कब तक छुपते रहेंगे डरते डरते।
हर कला अपने आप में सर्वोत्तम होती है
न ही कोई ज्यादा तो कोई कम होती है।
अपने आप को संकोचवश जकड़ कर न रखिये
दो कदम हर वक़्त ज़माने के साथ बढाए रखिये।
यह न भूलिए की कोई भी बड़ा बनकर नहीं आता है
अपने हुनर को सामने लाकर ही कामयाब बन पाता है।
चला गया है जो वक़्त उसकी फिक्र मत कीजिये
आने वाला कल अपने हाथों से न निकलने दीजिये।
शुरू करदो काम अंजाम की परवाह छोड़ दो
आपको सिर्फ कर दिखाना है आगे वक़्त पर छोड़ दो।
डॉ.सुचिता अग्रवाल 'सुचिसंदीप'
तिनसुकिया,असम
"प्रथम काव्य संग्रह 'दर्पण' में प्रकाशित"
7.7.1992
रुके रुके से है कदम क्यूं राहें आगे नहीं बढ़ती।
प्रतिभा है अगर आपमें क्यूं उजागर नहीं करते
संकोची बनकर कब तक छुपते रहेंगे डरते डरते।
हर कला अपने आप में सर्वोत्तम होती है
न ही कोई ज्यादा तो कोई कम होती है।
अपने आप को संकोचवश जकड़ कर न रखिये
दो कदम हर वक़्त ज़माने के साथ बढाए रखिये।
यह न भूलिए की कोई भी बड़ा बनकर नहीं आता है
अपने हुनर को सामने लाकर ही कामयाब बन पाता है।
चला गया है जो वक़्त उसकी फिक्र मत कीजिये
आने वाला कल अपने हाथों से न निकलने दीजिये।
शुरू करदो काम अंजाम की परवाह छोड़ दो
आपको सिर्फ कर दिखाना है आगे वक़्त पर छोड़ दो।
डॉ.सुचिता अग्रवाल 'सुचिसंदीप'
तिनसुकिया,असम
"प्रथम काव्य संग्रह 'दर्पण' में प्रकाशित"
7.7.1992
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