Monday, October 21, 2019

कुंडलियाँ छन्द

हास्य कुंडलिया


(1)

सारे घर के लोग हम, निकले घर से आज

टाटा गाड़ी साथ ले, निपटा कर सब काज।

निपटा कर सब काज, मौज मस्ती थी छाई

तभी हुआ व्यवधान, एक ट्रक थी टकराई।

ट्रक पे लिखा पढ़ हाय, दिखे दिन में ही तारे

'मिलेंगे कल फिर बाय', हो गए घायल सारे।।



(2)

खोया खोया चाँद था, सुखद मिलन की रात

शीतल मन्द बयार थी, रिमझिम सी बरसात।

रिमझिम सी बरसात, प्रेम की अगन लगाये

जोड़ा बैठा साथ, बात की आस लगाये।

गूंगा वर सकुचाय, गोद में उसकी सोया

बहरी दुल्हन पाय, चैन जीवन का खोया।



(3)

गौरी बैठी आड़ में, ओढ़ दुप्पटा  लाल

दूरबीन से देखकर, होवे मालामाल

होवे मालामाल, दौड़ जंगल में भागा

पीछे कुत्ते चार, हांपने मजनू लागा

हांडी गोल मटोल, नहीं कोई भी छोरी

हरित खेत लहराय, खेत की थी वो गौरी।।



(4)

रोटी बोली साग से, सुनो व्यथा भरतार

गूंथ गूंथ बेलन रखे, मारे नित नर- नार।

मारे नित नर -नार, पीड़ सब सह लेती हूं

खाकर भी बिसराय, तभी मैं रो पड़ती हूँ।

पिज़्ज़ा बर्गर खाय, करेंगे बुद्धि मोटी

पड़ेंगे जब बिमार, याद तब आये रोटी।



(5)

फूफा-जीजा साथ में, दूर खड़े मुख मोड़

नया जवाई आ गया, कौन करे अब कोड़।

कौन करे अब कोड़, आग मन में लगती है,

राजा साडू आज, उसे आंखें तकती है।

रगड़ रहा ससुराल, समझ हमको अब लूफा

हुए पुरातन वस्त्र, रो रहे जीजा-फूफा।।


 (6)         

बहना तुमसे ही कहूँ, अपने हिय की बात

जीजा तेरा कवि बना, बोले सारी रात

बोले सारी रात, नींद में कविता गाये

भृकुटी अपनी तान, वीर रस गान सुनाये

प्रकट करे आभार, गजब ढाता यह कहना

धरकर मेरा हाथ, कहे आभारी बहना।।
   

विविध कुंडलिया

   (1)

गीता पुस्तक ज्ञान की, भवसागर तर जाय

जनम जनम के फेर से, पढ़कर पार लगाय।

पढ़कर पार लगाय, सफल जीवन हो जाये,

मानव सद्गति होय, धाम प्रभु का ही पाये।

जो समझे यह गूढ़, जगत को उसने जीता,

'शुचि' मन सुन्दर धाम, राह जिसकी है गीता।।


(2)

गंगा मैया आपकी,शरण पड़े नर नार

पावन मन निर्मल करो, काटो द्वेष विकार।

काटो द्वेष विकार, प्रेम की अलख जगादो

करो पाप संहार, हमें भवपार लगा दो।

मैल दिलों के धोय, सदा मन रखना चंगा

विनती बारम्बार,जगत जननी माँ गंगा।

 (3)

पाया इस संसार में, छल, माया का जाल

नये नये पकवान से, सजा हुआ सा थाल।

सजा हुआ सा थाल, प्रलोभन कई लुभाते

कुछ नहिं सकें पचाय, रात दिन फिर भी खाते।

जाना सब कुछ छोड़, सत्य को क्यूँ बिसराया?

सत् चित् अरु आनन्द इसी जग भीतर पाया।

(4)

आये जीवन में खुशी,  द्विगुणित  अबकी साल

सुख समृद्धि धन लाभ से, होवें मालामाल।।

होवें मालामाल, सभी सत पथ पर चलकर।

मिट जाए हर कष्ट,रहें हम प्रेम से मिलकर।।

खुशियों का भण्डार, यहाँ जन-जन हर्षाये।

मंगल होवे काज,सौम्यता घर-घर आये।


 (5)

श्यामा तेरे रूप का, मनन करूँ दिन रात

सगुण रूप चितचोर से, मन की करती बात।

मन की करती बात, श्याम ही राह दिखाते

जीवन का हर गूढ़, बैठ कर पास सिखाते।

मन में है विश्वास, नाथ जग के हैं रामा

'शुचिता'जीवन सार, प्रेम सागर हैं श्यामा।

 (6)

कृष्णा कृष्णा बोलिये, चाहे दिन  हो रात

खोल हृदय की पोटली, उनसे करिये बात

उनसे करिये बात सफल जीवन हो जाये

छोड़ेंगे नहि हाथ वही भवपार लगाये

सुख सारे मिल जाय मिटेगी सारी तृष्णा

सब देवों के देव जगत के पालक कृष्णा।

(7)

नेता निकले माँगने, लोगों से अब वोट।

सड़क मरम्मत हो रही, वरना लगते सोट।

वरना लगते सोट,चुनावी आफत आई।

पाँच साल के बाद, निकलती सभी मलाई।

जीत अगर मिल जाय, छुपेंगे बनकर  प्रेता।

फिर सत्ता मिल जाय, योजना करते नेता।


 (8)

मानव जीवन है मिला, सत्कर्मों के बाद

पावन पाकर ये बने, मानवता की खाद

मानवता की खाद, खिलेगा उपवन प्यारा

इंसानों में श्रेष्ठ, बनेगा जीवन न्यारा

मानवता का गूढ़, समझ नहि पाते दानव

अपनाते कर जोड़, वही कहलाते मानव।

(9)

माटी शुचि इंसानियत,करो लेप नर नार

आत्मचेतना का करे, अद्भुत यह श्रृंगार

अद्भुत यह श्रृंगार, श्रेष्ठ मानव बन जाता

देवों का प्रिय रूप, अलौकिक जीवन पाता

जो जाती है साथ, कमाई वो यह खाटी

है खुशियों की खान, लगा मानवता माटी


(10)

आया सूरज साथ ले, खुशियों की सौगात।

शरद छुपा फिर आड़ में, दिनकर ने दी मात।

दिनकर ने दी मात, लगे धरती यह प्यारी।

हरित खेत लहराय, धरा की आभा न्यारी।

शरद सुहानी भोर, गगन है मन को भाया ।

कोयल छेड़े तान,  झूम के पपिहा आया।

  (11)

बाला के अस्तित्व की, रक्षा करना नार।

गर्भपात औजार से, मत देना तुम मार।

मत देना तुम मार, जगाना ममता अपनी।

करके निष्ठुर पाप, झूठ है माला जपनी।

नारी कोख महान,पाप यह टीका काला।

मूँक रहे निरुपाय, न्याय माँगे हर बाला।।


 (12)

माया इस संसार की, समझ सके नहि कोय

लोभ मोह ममता भरी, लाख प्रलोभन होय

लाख प्रलोभन होय, होड़ मचती है भारी

अँधों की है भीड़, भागती दुनिया सारी

बेच दिया ईमान, बेचती नारी काया

डूब रहा इंसान, डुबाती देखो माया।।

(13)

योगा के अभ्यास से, रोग मुक्त हो जाय।

मन सुंदर तन भी खिले, पहला सुख वह पाय।

पहला सुख वह पाय, निरोगी काया ऐसी।

सावन की बौछार, सुखद होती है जैसी।

अब तो मानव जाग ,अभी तक दुख क्यों भोगा?

शुरू करो मिल साथ, आज से करना योगा।।

(14)

अपनी भूलों का करे,जो जन पश्चाताप।

कटते उनके ही सदा,जीवन के संताप।।

जीवन के संताप,डगर में रोड़े होते।

सुख का हम अभिप्राय,भूलवश क्यूँ है खोते?

निंदा की लत छोड़,प्रेम की माला जपनी।

औरों में गुण देख,भूल बस देखो अपनी।।

(15)

ऐसी धार बहाइये , पापी मन बह जाय,

सुंदरतम संसार की, मूरत मन को भाय।

मूरत मन को भाय ,सफल जीवन ये करलें,

मानवता से प्रेम, प्रीत से झोली भरलें।

'शुचि' तय साँस वियोग, आस इस जग से कैसी?

छोड़ सकें जंजाल,भीख माँ दे दो ऐसी।

(16)

तरसे कोई मेघ तो, तरसे कोई धूप।
बाढ़ डाकनी आ गयी, इंद्र हुए है कूप।
इंद्र हुए हैं कूप,असम की जनता रोये।
पानी चारों ओर, बड़ी चिंता में खोये।
सूखा राजस्थान नहीं क्यूँ जाकर बरसे?
पड़ा हुआ आकाल,वहाँ की जनता तरसे।

(17)


मानव ने फैला दिया,सकल संतुलन दोष।
हुआ भूमि,जल,वायु का,ध्वस्त धरा उद्घोष।
ध्वस्त धरा उद्घोष, प्रदूषण मत फैलाओ।
समतोलन सिद्धांत,प्रगति पथ पर अपनाओ।
हुआ अंत शुरुआत,क्रूरता छोड़ो दानव
बचा एक उपचार,बढ़ाओ पौधे मानव।

(18)
सबकी हो यह भावना,स्वस्थ हमारा देश।
ऊर्जा से भरपूर है,भारत का परिवेश।
भारत का परिवेश,सुखद जीवन है देता,
रोगों को क्षण में,चमत्कृत हो हर लेता।
रिपु-रण की लघु चाल,'करोना' झूठी भभकी।
प्रबल हमारी सोच,करेगी रक्षा सबकी।

(19)

राधा पूछे श्याम से,मानव का क्या हाल?
पूज रहे सब क्यूँ हमें,होकर के बेहाल?
होकर के बेहाल,मौत से डरते देखा,
बीच भँवर कट जाय,जीव की जीवन रेखा।
कोरोना है नाम,राक्षसी आयी बाधा,
कृष्ण करे संहार,चलो धरती पर राधा।


डॉ.शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप'
तिनसुकिया, आसाम

● कुण्डलिया छंद विधान ●

कुंडलिया एक मात्रिक छंद है। यह एक दोहा और एक रोला के मेल से बनता है। इसके प्रथम दो चरण दोहा के होते हैं और बाद के चार चरण रोला छंद के होते हैं। इस प्रकार कुंडलिया छह चरणों में लिखा जाता है और इसके प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती हैं, किन्तु इनका क्रम सभी चरणों में समान नहीं होता। दोहा के प्रथम एवं तृतीय चरण में जहाँ 13-13 मात्राएँ तथा दूसरे और चौथे चरण में 11-11 मात्राएँ होती हैं, वहीं रोला में यह क्रम दोहे से उलट हो जाता है, अर्थात प्रथम व तृतीय चरण में 11-11 तथा दूसरे और चौथे चरण में 13-13 मात्राएँ होती हैं। दोहे में यति पदांत के अलावा 13वीं मात्रा पर होती है और रोला में 11वीं मात्रा पर।

कुंडलिया रचते समय दोहा और रोला के नियमों का यथावत पालन किया जाता है। कुंडलिया छंद के दूसरे चरण का उत्तरार्ध (दोहे का चौथा चरण) तीसरे चरण का पूर्वाध (प्रथम अर्धरोला का प्रथम चरण) होता है। इस छंद की विशेष बात यह है कि इसका प्रारम्भ जिस शब्द या शब्द समूह से किया जाता है, अंत भी उसी शब्द या शब्द समूह से होता है। कुंडलिया के रोला वाले चरणों का अंत दो गुरु(22) या एक गुरु दो लघु(211) या दो लघु एक गुरु(112) अथवा चार लघु(1111) मात्राओं से होना अनिवार्य है।

*रोला में यति पूर्व 21 (गुरु लघु) तथा यति पश्चात त्रिकल आना चाहिए*

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