Thursday, October 24, 2019

मुक्त कविता, "मेरे उपवन की दो कलियाँ"


मेरे उपवन की दो कलियाँ,
खिल रही फूल सी सुन्दर वो ।
महका है जीवन उनसे ही,
है मुझे जान से प्यारी वो।

बहार जीवन में उनसे ही है,
गम सारे भुला देती है वो।
मधुर व्यवहार और मीठी वाणी,
बेटियाँ न्यारी प्यारी है वो।

घर की रौनक उनसे बढती,
खुशियों के गीत गाती है वो।
है दुःख की दवा दोनों के पास,
पल भर में हँसा देती है वो।

हो रहा समय व्यतीत ऐसे,
मानो पंख लगा उड़ रहा है वो।
मन सोच मेरा घबराता है अब,
किसी और की अमानत है वो।

हर संस्कार दे रही प्रेम से उनको,
अवगत हर सीख से हो रही वो।
जीवन की हर राह में रहे खुश,
हुनर सारे सीख रही है वो।

आत्मविश्वास और स्वावलंब की,
प्रतिमूर्ती नजर आती है वो।
आडम्बर ,दिखावा, दहेज की बू से,
मुरझा भी सकती है वो।

है जिसे भावनाओं की कदर,
उसे अपना सकती है वो।
है प्रेम पर यह दुनिया कायम,
यही विश्वास रखती है वो।

सुचिता अग्रवाल 'सुचिसंदीप'

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