Friday, August 2, 2019

गीत, "दिल का सदमा"

 बह्र-(12122 12122 12122 12122)

किसे दिखाऊँ ये दिल का सदमा,हमें हुआ ग़म, उन्हें पड़ी क्या?
लबों पे उनके हँसी जहाँ की,ये आँख है नम,
उन्हें पड़ी क्या?

नज़र में उनकी मेरी मोहब्बत,खिलौने भर से अधिक कहाँ थी।
कहा नहीं कुछ,यकीन तोड़ा,चले वो मंज़िल नई जहां थी।
जो सिलसिला था हमारे दरम्यां,अगर गया थम,
उन्हें पड़ी क्या?
किसे दिखाऊँ ये दिल का सदमा,हमें हुआ ग़म, उन्हें पड़ी क्या?

कभी छुपाया कभी जताया,दिलों की कैसी ये बेबसी थी।
वफ़ा को खुलकर जिये कहाँ थे,मगर यकीं वो प्रेयसी थी।
कहूँ भी कैसे वो बेवफ़ा है,ठगे गए हम,
उन्हें पड़ी क्या?
किसे दिखाऊँ ये दिल का सदमा,हमें हुआ ग़म, उन्हें पड़ी क्या?

हमें मिटा कर,बसा लिया घर,सवाल इतने जवाब ढूँढूँ।
कहाँ लगाऊँ न जानूँ दिल को,भुला सके वो शराब ढूँढूँ।
खुशी हमें थी मिली जियादा, हुई अभी गुम,
उन्हें पड़ी क्या?
किसे दिखाऊँ ये दिल का सदमा,हमें हुआ ग़म, उन्हें पड़ी क्या?

#स्वरचित#मौलिक
सुचिता अग्रवाल"सुचिसंदीप"
तिनसुकिया, असम
Suchisandeep2010@gmail.com



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