Monday, August 12, 2019

लघुकथा,प्राची

बारह वर्षीय प्राची ने एक लंबी और पतली लकड़ी के अग्रिम भाग पर, लोहे की कील को मोड़कर इस तरह से लगा दी थी कि उसकी छत के पास आई पड़ोस के घर पर लगे आम की टहनी को अपनी ओर खींचकर आम तोड़ सके।
अपने पास तक तो खींच लाई लेकिन जैसे ही  टहनी को पकड़ने लगी आम नीचे  घर की टीना की छत पर जा गिरा।
"कौन है?कौन है?
डंडा लेकर शिबू अंकल और नए किरायेदार बाहर आ गए।
आवाजें सुनकर प्राची डरकर अपनी माँ पूर्वा के पास जाकर रोने लगी।
"वो मेरे आम है, मैं क्यूँ नहीं तोड़ सकती उनको बोलो"
"वो उनके घर का पेड़ है बिटिया"
"तो क्या हुआ, जब हम उस घर में रहते थे तब मैंने ही तो वो पेड़ लगाया था। तुम तो जानती  ही हो कि क्लास वन में मुझे वो पेड़ स्कूल से मिला था, लगाने के लिए।
ये पेड़ नए किरायेदार या मकान मालिक शिबू अंकल का थोड़े ही है।
प्राची को रोते रोते बोलते सुनकर पूर्वा को उसकी पीड़ा का अहसास हो रहा था। छः साल की प्राची अपने आँगन में उस आम के पेड़ को लगाकर कितनी खुश थी। कैसे उसकी देखभाल करती थी। स्कूल जाने से पहले पानी डालना कभी नहीं भूलती, और प्रतिदिन ये पूछना कि ये कब बड़ा होगा? मुझे इसके आम कब मिलेंगे?
कितनी रोई थी प्राची उस दिन जब हम उस किराए के मकान को छोड़कर अपने खुद के घर में प्रवेश कर रहे थे। उसका हठ कि इस पौधे को भी साथ लेकर जाऊँगी। बड़ी मुश्किल से ही वो समझी थी कि यदि उसे हटाया गया तो वो मर जायेगा,और अंत में उसकी जिंदगी बचाने के लिए अपनी खुशी का गला दबा लिया था नन्ही प्राची ने। जैसे कि जीवनदाता का फर्ज अदा कर दिया हो।
प्राची अब भी लगातार रोये जा रही थी। पूर्वा ने उसका ध्यान हटाने हेतु कहा-
बेटा,चलो हम एक और नया पौधा लगाते हैं, प्राची हँसते हँसते पूर्वा के साथ गार्डन की तरफ बढ़ने लगी।

#स्वरचित
सुचिता अग्रवाल "सुचिसंदीप"
तिनसुकिया, असम

No comments:

Post a Comment

Featured Post

शुद्ध गीता छंद, "गंगा घाट"

 शुद्ध गीता छंद-  "गंगा घाट" घाट गंगा का निहारूँ, देखकर मैं आर पार। पुण्य सलिला, श्वेतवर्णा, जगमगाती स्वच्छ धार।। चमचमाती रेणुका क...