"विचार सक्षम है।इसके लिए तो भगवान को धन्यवाद देना ही चाहिए कि विचारों से अपाहिज नहीं बनाया। दिव्यांग होना किसी अभिशाप से कम नहीं होता, लेकिन अपनी दिव्यांगता का रोना जीवन भर रोते रहने से समस्या का समाधान नहीं हो सकता है, विचार सर्वशक्तिमान है जिनकी बदौलत हम हर वह सफलता हासिल कर सकते हैं जिसका हम आह्वान करते हैं।
माना कि मैं संसार के इस शोर शराबे को नहीं सुन सकता,अपनी भावनाओं को बोलकर व्यक्त नहीं कर सकता लेकिन मैं अपनी सोच को वास्तविक उड़ान के माद्यम से व्यक्त तो ओरों से बेहतर कर सकता हूँ। "शारीरिक अपाहिजता से ज्यादा कष्टप्रद मानसिक अपाहिजता होती है।"
मेरी हर इच्छा एक आदेश है जिसका पालन करना ब्रह्मांड के लिए सर्वोपरि है। मैं खुश हूँ क्यूँ कि मेरा दृढ़ संकल्प प्रतिपल मुझे जीवन में हँसकर अग्रसर होने को प्रेरित करता है।
जिंदगी को मुश्किल और आसान बनाने की क्षमता भगवान ने दी है तो क्यूँ न उसे आसान बनाकर जियें, प्रेरणादायक बनें।
'नहीं' को अपने आस पास भी जगह न देकर 'है' में जीने वाले मानसिक सक्षम व्यक्ति ही वास्तव में बिना रुकावट के आगे बढ़ते हैं।
मेरा लक्ष्य है कि मैं शारीरिक अपाहिजता को मानसिक पूर्णता से जीतूँ ताकि मेरे जैसे सभी लोगों को साफ सूथरी राह दिखा सकूँ।"
तेईस वर्षीय नोजवान सूरज जो कि कुछ दिनों पहले ही हमारे पड़ोस में रहने आया था। मुझे पता चला कि वो बोल और सुन नहीं सकते,मैं इंसानियत और सही पूछें तो भलाई करने के नेक इरादे से उनसे मिलने चली गयी।
उनका इंतजार ड्राइंग रूम में कर रही थी जहां एक खुली डायरी के उस पन्ने पर मेरी नजरें अनायास ही चली गयी जिस पर लिखे इन शब्दों ने मुझे सही मायने में सक्षम बनने की प्रेरणा दी।
#स्वरचित मौलिक
डॉ.सुचिता अग्रवाल "सुचिसंदीप"
तिनसुकिया, असम
Suchisandeep2010@gmail.com
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