ओढ़ पीताम्बर चुनर कान्हा, मनिहारी का रूप धरे।
द्वार किशोरी के ले पहुँचे, चूड़ी का इक थाल भरे।
पकड़ कलाई राधा की प्रभु, भूल गये सुध ही अपनी।
कभी निरखते हाथ सलोने, कभी झूम कर नाच करे।।
सुचिता अग्रवाल "सुचिसंदीप"
तिनसुकिया
द्वार किशोरी के ले पहुँचे, चूड़ी का इक थाल भरे।
पकड़ कलाई राधा की प्रभु, भूल गये सुध ही अपनी।
कभी निरखते हाथ सलोने, कभी झूम कर नाच करे।।
सुचिता अग्रवाल "सुचिसंदीप"
तिनसुकिया
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