(विधा-लावणी छन्द)
पाया चौराहे पर उनको,कदम मुड़े वो जिधर गये,
कौन डगर से आये थे वो,ना जानूँ फिर किधर गये।
दिल की सुनकर साथ हो लिए,खाकर धोखा हम हारे,
सपनों की झूठी दुनिया के,उजड़ गए घर ही सारे।
नैना ढूंढे चीख रहा दिल,सूख मेरे अब अधर गये।
कौन डगर से आये थे वो,ना जानूँ फिर किधर गये।
अंजानी राहों से रस्ता, मंजिल का जो ढूँढा था,
इक रिश्ते के खातिर रिश्ता,कितनों से ही टूटा था।
भ्रम कितना ये पाल रखा था,दिन मेरे अब सुधर गये,
कौन डगर से आये थे वो,ना जानूँ फिर किधर गये।
दर्द हवा के झोंके से भी,दुखती आँखों को होता,
मत पूछो जो छला गया वो, जीवन में क्या-क्या खोता।
मतलब पूरा करने वाले,आज इधर कल उधर गये।
कौन डगर से आये थे वो,ना जानूँ फिर किधर गये।
#सर्वाधिकार सुरक्षित
#स्वरचित
सुचिता अग्रवाल'सुचिसंदीप'
तिनसुकिया, असम
पाया चौराहे पर उनको,कदम मुड़े वो जिधर गये,
कौन डगर से आये थे वो,ना जानूँ फिर किधर गये।
दिल की सुनकर साथ हो लिए,खाकर धोखा हम हारे,
सपनों की झूठी दुनिया के,उजड़ गए घर ही सारे।
नैना ढूंढे चीख रहा दिल,सूख मेरे अब अधर गये।
कौन डगर से आये थे वो,ना जानूँ फिर किधर गये।
अंजानी राहों से रस्ता, मंजिल का जो ढूँढा था,
इक रिश्ते के खातिर रिश्ता,कितनों से ही टूटा था।
भ्रम कितना ये पाल रखा था,दिन मेरे अब सुधर गये,
कौन डगर से आये थे वो,ना जानूँ फिर किधर गये।
दर्द हवा के झोंके से भी,दुखती आँखों को होता,
मत पूछो जो छला गया वो, जीवन में क्या-क्या खोता।
मतलब पूरा करने वाले,आज इधर कल उधर गये।
कौन डगर से आये थे वो,ना जानूँ फिर किधर गये।
#सर्वाधिकार सुरक्षित
#स्वरचित
सुचिता अग्रवाल'सुचिसंदीप'
तिनसुकिया, असम
No comments:
Post a Comment