कुकुभ छंद
"बादल दादा-दादी जैसे" (बाल-कविता)
श्वेत, सुनहरे, काले बादल, आसमान पर उड़ते हैं।
धवल केश दादा-दादी से, मुझे दिखाई पड़ते हैं।।
मन करता बादल मुट्ठी में, भरकर अपने सहलाऊँ।
रमी हुई ज्यूँ मैं दादी के , केशों का सुख पा जाऊँ।।
रिमझिम बरसा जब करते घन, नभ पर नाच रहे मानो।
दादी मेरी पूजा करके, जल छिड़काती यूँ जानो।।
काली-पीली आँधी आती, झर-झर बादल रोते हैं।
गुस्से में जब होती दादी, बिल्कुल वैसे होते हैं।।
बड़े जोर से उमड़ घुमड़ जब, बादल गड़गड़ करते हैं।
दादी पर दादाजी मेरे, ऐसे बड़बड़ करते हैं।।
डरा डरा कर बिजली जैसे, चमके और कड़कती है।
वैसे ही दादी तब मेरी, सुध बुध खोय भड़कती है।।
चम चम करते चाँदी से घन, कभी हिलोरे लेते हैं।
मैं दौडूं तो साथ हमेशा, बादल मेरा देते हैं।
आसमान में विचरण करना, ज्यूँ बादल को आता है।
दादा-दादी के साये में, रहना मुझको भाता है।।
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कुकुभ छंद विधान -
कुकुभ छंद सम-मात्रिक छंद है। इस चार पदों के छंद में प्रति पद 30 मात्राएँ होती हैं। प्रत्येक पद 16 और 14 मात्रा के दो चरणों में बंटा हुआ रहता है। विषम चरण 16 मात्राओं का और सम चरण 14 मात्राओं का होता है। दो-दो पद की तुकान्तता का नियम है।
16 मात्रिक वाले चरण का विधान और मात्रा बाँट ठीक चौपाई छंद वाला है। 14 मात्रिक चरण की अंतिम 4 मात्रा सदैव 2 गुरु (SS) होती हैं तथा बची हुई 10 मात्राएँ अठकल + द्विकल होती हैं। । अठकल में दो चौकल या त्रिकल + त्रिकल + द्विकल हो सकता है।
त्रिकल में 21, 12 या 111 तथा
द्विकल में 11 या 2 (दीर्घ) रखा जा सकता है।
चौकल और अठकल के सभी नियम लागू होंगे।
शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप'
तिनसुकिया, असम Suchisandeep2010@gmail.com
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