Sunday, July 14, 2019

गीत, विरह

(विधा-लावणी छन्द)

क्यूँ शब्दों के जादूगर से, दिल मेरा ही छला गया,
उमड़ घुमड़ बरसाया पानी, बादल था वो चला गया।

तड़प रही थी एक बूंद को, सागर चलकर आया था,
प्यासे मन से ये मत पूछो,कितना तुमको भाया था।
सीने में इक आग धधकती,वो मेरे क्यूँ जला गया।
उमड़ घुमड़ बरसाया पानी, बादल था वो चला गया।

तार जुड़े फिर टूट गये भी,गीत अधूरे मेरे हैं,
साँसों की सरगम में मेरी,सुर सारे ही तेरे हैं।
बिन रदीफ़ के भला काफ़िया,कैसे यूँ वो मिला गया।
उमड़ घुमड़ बरसाया पानी,बादल था वो चला गया।

अक्सर ऐसा होते देखा,जो जाते कब आते हैं,
इंतजार में दिन कट जाते,आँख बरसती रातें हैं।
कुछ तो मुझ में बात लगी थी,नैन मुझी से मिला गया,
उमड़ घुमड़ बरसाया पानी,बादल था वो चला गया।

#सर्वाधिकार सुरक्षित
#स्वरचित
सुचिता अग्रवाल'सुचिसंदीप'
तिनसुकिया, असम

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