सवा सेर तुम प्रेम लो, पांच किलो विश्वास।
भाव समर्पण डालिये, जो होता है खास।
राम नाम लपसी बना, जो खाते दिन रात
खुशियों का तांता लगे, साल, दिवस हर मास।
मुक्तक
पृथ्वी
जल फल नग पशु जीव कली खग,
पृथ्वी सबकी माता है।
बोझ अकेले सबका सहकर,
पालन करना भाता है।
मर्यादा की सीमा मानव,
प्रतिपल तुम तो लांघ रहे।
अपना क्या अस्तित्व धरा बिन,
समझ नहीं क्यूँ आता है।
डॉ शुचिता अग्रवाल'शुचिसंदीप'
तिनसुकिया, आसाम
भाव समर्पण डालिये, जो होता है खास।
राम नाम लपसी बना, जो खाते दिन रात
खुशियों का तांता लगे, साल, दिवस हर मास।
मुक्तक
पृथ्वी
जल फल नग पशु जीव कली खग,
पृथ्वी सबकी माता है।
बोझ अकेले सबका सहकर,
पालन करना भाता है।
मर्यादा की सीमा मानव,
प्रतिपल तुम तो लांघ रहे।
अपना क्या अस्तित्व धरा बिन,
समझ नहीं क्यूँ आता है।
डॉ शुचिता अग्रवाल'शुचिसंदीप'
तिनसुकिया, आसाम
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